कोई किसी का नही होता ज़नाब,संसार अनोखा है,
ये रिश्ते_नाते, अपनेपन का ढोंग,सब एक धोखा है।
ख़्वाहिशें बदलते रहते हैं लोगों के,वक़्त के मुताबिक,
तड़का लगता रहे, रहता तभी तक, रंग भी चोखा है।
तमाम_उम्र एक जैसा नहीं रहता है ? कुछ भी यहाँ,
सब बदल जाते हैं बंधु , जब_जब मिलता मौक़ा है।
ना कर उम्मीद वफ़ा_परस्ती की ,आज के दौर में,
दिन ब दिन बेमानी का राज, बढ़ रहा चौतरफ़ा है।
खोना-पाना चलता रहता है,इतना भी मलाल न कर ,
यही दुनिया है मेरे दोस्त...,यहाँ अक्सर ऐसा होता है।
_ सुलेखा.
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