Suravi Gupta   (सुरभि भदानी)
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Joined 21 November 2018


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9 MAR AT 11:40


कुछ शख्स
ना आंखों से उतरते हैं
ना दिल से उतर पाते हैं,
बस जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए,
हम भूल जाना का स्वांग मात्र रचाते हैं।

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2 FEB AT 21:00

हमको कहाँ पता था,
वो खामोशी में रोता है,
सुनता है सबके ताने,
तन्हाई में रोता है,
लड़का हूं मैं सोचकर,
मौन में दुख का जहर पीता है,
काश कोई समझता उसको,
उसका लटकता शव,
समाज को यूँ घूरता है।

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30 JAN AT 20:00

मन की पीड़ा को काश वो समझता,
गृहस्थी से परे मेरे दिल को वो परखता।

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30 JAN AT 11:28


निकालती हूँ नंबर तुम्हारा डायरी से,
फिर रुक जाती हूँ,
सोचती हूँ पूछ लू तुम कैसे हो?
पर फिर मैं ठिठक जाती हूँ,
दुबारा हो ना जाए इश्क तुमसे,
बस इसी बात से मैं सहम जाती हूँ।

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8 NOV 2023 AT 21:28

कुछ यादें समेटकर,तुमसे दूर जाना है,
पल भर के साथ को, उम्र भर निभाना है,
रखकर तस्वीर दिल में तुम्हारी,
तुम्हें भुलाने का ढोंग जताना है।

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18 OCT 2023 AT 21:19


बादलों के ओट से चाँद निकलता है जैसे,
मेरा यार आज वैसा ही नजर आयेगा।

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18 OCT 2023 AT 20:59

जाने कहाँ वो अब रहती है यार,
कहती थी उम्र भर निभाएगी प्यार,
अंत तक निभा ना सकी,
जाते वक़्त अपना पता बता ना सकी।

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15 OCT 2023 AT 17:26

हर शख्स बिखरने के बाद जुड़ता जरूर है,
और जुड़ने के बाद बिखरता भी जरूर है,
बस इसी बिखराव और जुडाव में सब स्थिर हैं,
शायद जीवन का यही उसूल है।

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13 OCT 2023 AT 21:38

लगता है कल की ही बात थी,
तुम्हारी मेरी एक छोटी मुलाकात थी,
तुम्हारी मुस्कराहट समेटे हुए मैंने,
पूरी जिंदगी बिता दी,
काश तुम होती मेरे पास,
तो तुमको बताता,
तुम्हारी मुस्कराहट में सिमटी,
मेरी कायनात थी।

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13 OCT 2023 AT 11:25


कुछ अनंत सपने,जिन सपनों को मैंने,
देखा था कभी,अपनी खाली आंखों से,
पूरा करने की ख्वाहिश में,घर से निकलते थे कभी,
आज ना सपने रहे,ना रह गया घर है,
बस जिम्मेदारी से भरा,एक दफ्तर है,
उस दफ्तर में आता हूँ,कैदी बनकर रह जाता हूँ,
कमाने की होड़ में, खुद को भूल जाता हूँ,
झूठी मुस्कान लपेटे,सब निभाता हूँ,
और वो सपने खाली वक़्त में,मुझको निचोड़ते हैं,
आंखें बंद करता हूँ,और सपनों को,
जिम्मेदारी का हवाला देकर,दफ्तर की राह दिखलाता हूँ।

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