आज शोर भी मचायेगे और पुतले भी जलाएंगे
आफिया के इन्साफ को गुहार सब लगाएंगे
ना जाने कहां कितनी आफिया होंगी
कोन झूलस कर मर गई होगी
कोन मौत को तरसती होगी
कोन पिता के समान के खातिर
मुह सिल कर बैठी होगी
आख़िर कब तक....
कब तक इन्साफ की मांग करोगे
और उनका क्या जो दिखी नहीं अँधेरों में
सबक ले इन बातों से
क्यू ना बेटी को सक्षम बनाये
दहेज में देने वाले पैसे से
क्यू ना उसको खुद कामना सिखाये
कमाई ना सिर्फ पैसे की आत्म समान की
जो लड़ सके खुद के खातिर ऐसे स्वाभिमान की
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