Sumit Verma   (Sumit Verma)
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Joined 27 October 2019


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YESTERDAY AT 7:23

वो लम्हें ही कुछ और थे,
जो अब याद बन गए,
कैसे भरे रहने वाले वो कुर्सी,
अब पड़े–पड़े सुनसान बन गए...

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2 MAY AT 22:23

बहते पानी की मधुर ध्वनि के बीच,
जब तेरी धड़कन मेरी धड़कन में समा रही थी,
मानो वो भी एक मधुर ध्वनि गा रही थी...

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1 MAY AT 16:39

सोचूं जब मैं
ज़िंदगी के बारे में,
है अजीब पहेली
कोई न जाने ये,
कब शुरू हुई,
कब खत्म होगी,
क्या किसकी
कौन सी कहानी होगी,
कहां लिखा है ये,
बुझ न पाऊं मैं,
हर पल में ज़िंदगी का
एक नया झलक
पाऊं मैं,
अब मैं कैसे समझूं
की आखिर ज़िंदगी
कैसी है?
सोचूं जब मैं....

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30 APR AT 11:27

भावनाओ का सफर,
कोई समझ न सका,
बह गया भावनाओ में,
पर भावनाएं न कह सका....

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29 APR AT 22:46

दो दो लाइन कहते कहते,
पूरी बात कह गए,
कोई समझा नहीं हमें,
हम इशारों ही इशारों में जज्बात कह गए...

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29 APR AT 22:41

हम पोंछ रहे थे उनके आंसू,उन्हें अपना समझकर,
वो बहा रहे थे आंसू, किसी और को अपना मान कर...

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29 APR AT 12:41

हैं मालूम की कैद है हम,
पर भी रास्ते की तलाश है,
न निकल सके है अब तक,
पर निकलने की आस है,
माना की अतीत थोड़ा बुरा है,
जो चाहा वो ना मिला है,
पर अब उस अतीत को बदल,
भविष्य को सुंदर बनाना है,
ना मिला है जो रास्ता,
उस रास्ते को पाना है,
दूर नहीं मंजिल मुझसे,
ये तो मुझे पता हैं,
पर पाया नहीं है इसे अब तक,
अब पाना ही बचा है,
हैं मालूम की कैद है हम ....

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29 APR AT 10:10

पता नहीं आगे क्या होगा,
हवा का रुख न जाने किस ओर होगा,
चल पड़े है हम नई दिशा में,
नई दिशा में जाने क्या होगा,

कुछ पता नहीं फिर भी चल रहे,
कदम अपने आप ही आगे बढ़ रहे,
समझ से परे चल रही दुनिया,
या हम नासमझ बन गए है,

क्या पता मिलेगी आगे मंजिल,
या फिर एक बार हार से सामना होगा,
नई दिशाओं का सफर है ये,
पता नहीं आगे क्या होगा....

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29 APR AT 1:00

एक ख़त लिखा है
उस खुदा को,
जिनके पास
वक्त ही नहीं है,
अब आस भी
क्या करूं उनसे,
उनके पास तो
ख़त खोलने की
जब फुर्सत ही
नहीं है...

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28 APR AT 19:54

हैं बंद दरवाजे सब,
कैसे मैं कैद से निकलूं,
खुद के पिंजरे में कैद हूं,
दोष भला किसी और को क्यों दूं...

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