बैठा था फुर्सत से पुरानी यादों को कुरदने कौन आया है?
बहुत दिनों बाद आज फिर से उसका फोन आया है।
सवाल था उसका कैसे हो तुम?
मैंने कहा वैसा ही जैसे हो तुम,
ना जाने उसने क्या सोचा फिर बोला,
बदले नहीं वैसे के वैसे हो तुम,
सीधी बातों का कभी सीधा जबाब नहीं देते,
बोल ना सकते थे सीधा तो चुप ही रह लेते,
मुझे देखो मैं तो जमाने के साथ ढ़ल रही हूँ,
बदलते वक़्त के साथ खुद को बदल रही हूँ।
सचमुच बदल तो वो गयी थी,
खड़ा हूँ आज भी वहीं जहाँ तुम छोड़ गई थी,
पर बदलूँगा मैं भी अब बचा ना कोई मोह माया है,
ठीक है फोन रखो लगता है तुम्हारा वक़्त जाया है।
सूरज की तपतपाहट से तो हर कोई जलता है,
फिर भी ना बदला वो अबतक वैसे ही चलता है।
उसे पता है सच है वो,
तभी तो सबसे अलग है वो,
हर शुबह, शाम, दोपहर एक रात में बदलता है,
पर इससे भी तेजी से यहाँ इंसान बदलता है।
फूल कभी खुशबू पे अपनी हैं नहीं इठलाते,
मैं भी तो बदल गया हूँ ये कैसे बतलाते,
बदलते वक्त के साथ सबकुछ हैं बदले जाते,
बदल दिया मैंने भी सबकुछ पर वो गम ना बदलते जाते।
मेरी फुर्सत को फुरकत में बदलने कौन आया है?
बहुत दिनों बाद फिर उसी का फोन आया है।।
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