Sumit Mishra   (Zavian)
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Ambivert.
Joined 8 March 2018


Ambivert.
Joined 8 March 2018
29 NOV 2018 AT 13:51

रीवा के लडिका
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रिश्तेदारी निपोरएं विधायक से, अऊ तेल नही है गाड़ी मा,
भले सगले दसवीं फैल हवएं,मगर नौकरी चाही सरकारी मा।

किताबों से कोऊ सरोकार नही,जबरन लगे हैं तैयारी मा,
अऊ दस साल से दादा भाई कहत फिर रहे हैं,की फारम भरे हैंन पटवारी मा ।

अऊ कऊन सी गाड़ी ईं ले नही सकें,नास कर दिहिन बाप के खेतन के,
बेयौहरई मा इनके बेढ़ सकान, अब बाग रहे पीछे नेतन के।

सरकारी दफ्तर मा ये पेले आपन जलवा, मारत हैं डायलाग कऊनो एक्टर के,
अऊ दादू बंद है जेल मा तबसे, जब से अडाए रहें
कट्टा कलेक्टर के।

अऊ जब से हाथ मा आयी या पल्सर, दादू देखत नहीं हैं दाएं बाएं।
सिग्नल मा गड़ी ईं रोकय नही,बस जाए दे कक्का साएं साएं।

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27 NOV 2018 AT 23:53

* पटाकों की गूंज मुझे सच्ची नही लगी,
ये दिवाली मां के बिना अच्छी नही लगी।

* रात को रात भर जगा के रख्खा था,
मां ने दियों से अंधेरे को बुझा के रख्खा था।

* मेरी हर गुस्ताख़ी,मेरी हर चलाकी,तुझपे चल जाएगी,
"खुदा" अगर मुझे कुछ हुआ, तो वहां तेरी तस्वीर जल जाएगी।

* अश्कों को उसकी आंखों पे लाना छोड़ दो,
ए मेरी याद,मेरी मां के पास जाना छोड़ दो।

* कैसे मैं अपने आसुओं को आने से रोकूं,
कैसे अपनी मां को,दूर जाने से रोकूं।

* मेरे पास,मेरे सनम की याद बेवफाई बन के रह गई थी,
उसमे मेरी मां की गोद दवाई बन के रह गई थी।

* खुदा कभी तू ये खता ना करना,
किसी मां को बेटे से जुदा ना करना।

* घर से निकलता हूं,घर को लौटता हूं,
तू मुझे नज़र नही आती;
सोते - सोते देर हो जाती है;
तेरी आवाज़ नहीं आती;

ठंड में जान बुच कर निकल जाता हूं घर से;

अब पीछे से मफलर की फरमाइश नही आती।


* अब तो मां को कुछ यूं अपने पास बुला लेता हूं,
याद आती है मां की,तो रसोई मे चूलाह जला लेता हूं।

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16 JAN 2022 AT 0:54

मैं जो चाहता हूँ वो मुझे मिला ही नहीं,
कहीं मैं अमर तो नहीं।

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10 JAN 2022 AT 11:55

आखिर पता मैंने सुकून का पूछा अपने माज़ी से है,
पर ये कमबखत भी तो किसी का जन्मदिन बता रहे हैं।

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10 JAN 2022 AT 0:29

I wake up late only🤣

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8 JAN 2022 AT 14:01

Break her bed not her heart.

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11 OCT 2021 AT 10:23

मन की बात मन ही जाने, जाने क्या कोई और,
एक जो मन में राज़ छुपा है करता बड़ा है शोर।

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21 JUL 2021 AT 11:09

Ek acha dost ko khona ka dukh pyaar ko khone se zyda hota hai.

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14 JUN 2021 AT 9:18

ख़्वाइश लिए बैठें हैं लाचारी में,
चूक फ़िर कुछ निकली तय्यारी में।

कभी नसीब ख़ेला,कभी ख़ेली दुनिया उस्से,
ख़ेला जो अब तक है खुद्दारी में।

हो रहे काँधे भारी आहिस्ता और,
दर जुनून-खे़ज़ी बे-रोज़गारी में।

वो चल रहा चाल उसकी बारी है,
हम भी दौडे़ंगे अपनी बारी में।

मन हुआ जब खुद से सच बोलूँ मैं,
लगा फ़िर मैं अपनी ग़ज़ल-कारी में।

पियूँगा अश्क पर कासा-ए-सम नहीं,
और रहूँगा बा-हिम्मत नादारी में।

कलाकरी बड़ी है दरबारी में,
तुम बात करना हुंकारी में।

ज़माने से है "ज़ावियान" बस उतना ही,
हक़ीकत है जितनी अख़बारी में।

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8 JUN 2021 AT 14:38

पियूँगा अश्क पर कासा-ए-सम नहीं,
और रहूँगा बा-हिम्मत नादारी में।

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