ज़िंदा है वो कैसे,ख़ुद की लाश लिए हुए
घुटनों के बल बैठा जो अरदास लिए हुए
जमीन तो पाँव की कब की खिसक गई
घूम रहा है सर पे जो आकास लिए हुए
ये बात तो उसकी ग़ैरत की है, वो जाने
हमदर्द भी मिलेंगे पर,उपहास लिए हुए
उमर की चादर पुरानी हो गई है कितनी
तक रही रास्ता कौन सी आस लिए हुए
वो घर का भी पता भूल गया है, शायद
जो कल चला, अपनी तलाश लिए हुए
वो तरसती रही है उम्रभर गजरे केलिए
हम थे उदास,सूखे अमलतास लिए हुए
ठोकर से तंग आ चुका राहों मे पड़े पड़े
पत्थर ज़िंदा रहा यह एहसास लिए हुए।।
#सुहेल_अंसारी ❤️
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