दो पंछी बैठे थे इक डाल पर,
प्रेम में मग्न,
उन्हें देखा जब तो पुरानी यादें ताजा हो गईं,
हम भी कभी बैठते थे ऐसे ही साथ,
तू जो ख्वाब दिखाता था,
वादे करता था वो स्मरण हो गए,
वो ख्वाब जो झूठे थे फिर भी तूने दिखाए थे,
आंखों के आगे तैर गए,
तेरे वो झूठे वादे फिर स्मरण हो गए,
तेरी चाह नहीं जरूरत थे हम,
कैसे तेरी ज़रूरत बदली,
कैसे तेरी मोहब्बत बदली,
वो सब फसाने स्मरण हो गए,
दो पंछी बैठे थे इक डाल पर,
प्रेम में मग्न,
फिर देखते रहे उन पंछियों को,
उनमें अपने अतीत को,
उन्हें उड़ाने की हिम्मत नहीं हुई,
क्योंकि इश्क में अलग होने का दर्द ,
हम जान गए,
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