Sugandha Kumari  
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Joined 28 March 2024


Joined 28 March 2024
24 APR AT 22:40

कल फिर जो थकाहरा लौटा वो घर,
देख उसका लटका हुआ चेहरा
माँ की फिर पलकें भीग गईं,
देख छोटी बहन को
उसका हृदय फट उठा,
दवा जो मांगी पिता ने,
गर्दन झुका कर वो
कमरे की ओर चल पड़ा,
चिंताओं में फिर एक रात
आँखों आँखों मे बीती,
सुबह जो खोला गया दरवाजा
उसके कमरे का,
देख वहाँ का मंज़र,
सब अवाक् रह गए,
बेरोजगार था साहब !
उसने रोज रोज यूँ मरने से,
शायद,
एक बार में मरना उचित समझा होगा
देखिए साहब !
बेरोजगारी आज फिर,
एक युवा को निगल गई,
आज फिर एक परिवार को
तबाह कर गई....

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24 APR AT 21:31

तुझे बेवफ़ा लिखूं,
या फिर तन्हा छोड़ दूं...

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24 APR AT 21:11

खिलखिलाहट गूंजती थी कभी,
बच्चों की जहां,
अब वो घर सूना हो गया,
सुनाई पड़ती थी मां की दुआओं की गूंज कभी,
अब वो घर शांत हो गया,
बीवी के कहने पर,
छोड़ आया मां को वृद्धाश्रम,
और बेटा खुद कमाने शहर चला गया,
कुछ साल बाद आई मां देखने घर,
तो पाया कि अब वो घर अकेला रह गया

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24 APR AT 21:01

कितना अनुपम है यह शब्दों का संसार,
कितना सौंदर्य से परिपूर्ण है यह शब्दों का संसार,
कि कह नहीं पाते जो कभी
हम मुख से असलियत में,
वो कह जाते हैं हम इस की गलियों में खो कर,
कितना शक्तिशाली है ये शब्दों का संसार,
जिसका नाता सिर्फ कलम और
आपकी कल्पनाओं से है,
कि बयां करो कुछ शब्दों में,
कलम से अपनी,
तो बड़े से बड़े सिंहासन को भी,
हिला कर रख देने की क्षमता रखता है,
यह शब्दों का संसार..

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24 APR AT 20:50

अब भी हो जाती है मुलाकात उनसे,
पर उस मुलाकात में पहली सी
मुलाकात नहीं रही,
यूं तो रोज़ ही होती हैं बातें उनसे,
पर उन बातों में पहले सी बात नहीं रही,
देखती थीं जो नजरें कभी प्यार से हमें,
आज उन नजरों में अदावत देखी हमने,
अब उनमें वो प्यार की कहानी नहीं रही

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24 APR AT 20:40

हम इश्क में उनके लबरेज़ थे,
और वो कहीं और दिल लगा रहे थे,
दिमाग लबरेज़ था यादों में उनकी,
और वो नई यादें बना रहे थे,
वो कुछ यूं हमसे वफ़ा निभा रहे थे,
कि हमारी वफ़ा को ही बेवफ़ा ठहरा रहे थे

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23 APR AT 20:51

उसके दूर होने का दुख नहीं मुझे,
गलती मेरी ही थी की,
मेरे इतना चाहने के बाद भी,
मेरे इश्क में कुछ कमी रह गई

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23 APR AT 20:38

दो पंछी बैठे थे इक डाल पर,
प्रेम में मग्न,
उन्हें देखा जब तो पुरानी यादें ताजा हो गईं,
हम भी कभी बैठते थे ऐसे ही साथ,
तू जो ख्वाब दिखाता था,
वादे करता था वो स्मरण हो गए,
वो ख्वाब जो झूठे थे फिर भी तूने दिखाए थे,
आंखों के आगे तैर गए,
तेरे वो झूठे वादे फिर स्मरण हो गए,
तेरी चाह नहीं जरूरत थे हम,
कैसे तेरी ज़रूरत बदली,
कैसे तेरी मोहब्बत बदली,
वो सब फसाने स्मरण हो गए,
दो पंछी बैठे थे इक डाल पर,
प्रेम में मग्न,
फिर देखते रहे उन पंछियों को,
उनमें अपने अतीत को,
उन्हें उड़ाने की हिम्मत नहीं हुई,
क्योंकि इश्क में अलग होने का दर्द ,
हम जान गए,

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23 APR AT 20:26

Tears and your memories



Your happiness and you deserve it

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22 APR AT 22:14

नारी के लिए आज भी एक संघर्ष है,
अस्तित्व बचाए रखना,
इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुष से,
क्योंकि नारी को पाक होते हुए भी,
स्वयं को पल पल
पाक साबित करना होता है,
आज भी अस्तित्व बचाए रखने के लिए,
सिखाया जाता है नारी को,
पुरुष की अधीनता स्वीकारना,
उसकी गुलामी करना,
और जो नारी नहीं स्वीकृत करती,
गुलामी पुरुष की,
पुरुष डर कर,
फिर तार तार करने लगता है,
नारी की अस्मिता को,
उसके चरित्र को,
कि कहीं खतरे में ना आ जाए,
झूठा पुरूषत्व उसका,
नारी के लिए आज भी एक संघर्ष है
अस्तित्व बचाए रखना,

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