" क्योंकि वो ज़िद्दी स्त्री है"
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जिन स्त्रियों ने अपनी शर्तों पर जीवन जीना जिया या जीना चाहा,
कहलाई वो ज़िद्दी स्त्रियाँ,
ज़िद्दी ही नहीं.....
चंचल,दुष्चरित्र,बदज़ुबान.....
क्योंकि घर की पुरुष मानसिकता में जकड़ी उनकी सासों को,
नहीं भाया उनका अल्हड़पन,
उनकी मस्तानी चाल, उनका बेबाक़ अंदाज़, उनकी सोच का खुलापन,
क्योंकि वो नहीं पड़ी रहना चाहती माहवारी के दिनों में कमरे के एक अंधेरे कोने में,
वो नहीं डालती अपनी ब्रा-पेंटी को कपड़ों के नीचे छिपाकर,
वो नहीं करती फ़ालतू का दिखावा, ना ही मानती है वो पुरुषवादी रुढ़िवादी सोच को,
वो ज़िद्दी है क्योंकि वो
अपने अस्तित्व की मालिक स्वयं बनना चाहती है,
वो लीक की दीवार को तोड़ रही है,
जो पोषित है सदियों से डरपोक औरतों द्वारा,
अक़्सर ही जब वो बोलती है अपने लिए,
तो उस पर भूत के,चुड़ैलों के साये घोषित कर दिए जाते हैं,
उसे ज़बरन ही तथाकथित पीर, औलियों, स्वांगि लोभी मैय्याओं,या धर्म के ठेकेदारों के हवाले कर दिया जाता है,
और फिर ख़त्म होती है पागलपन,शोषण की हदें,
उसके विश्वास को चकनाचूर करने की हदें,
पर वो डिगेगी नहीं,और करेगी अंत तक अपने लिए संघर्ष,
और मटियामेट कर देगी उन पुरुषवादी नियमों को, व्यवस्थाओं को जो बनी हैं युगों से फ़क़त स्त्री के लिए....
©सुधा जोशी पाण्डेय "रजनी"
चोरगलिया (उत्तराखण्ड)
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