माधव..
एक बार साँवरे अपना बना लो,
जब झूले मझधार में नईया,
पार भवसागर से लगाने आना,
बन कर माझी मेरे बंशीधर मोहन,
अपने मनमीत का फर्ज निभाना,
सारथी बन कर आना मनमोहन,
जो भटकूँ इधर उधर हे प्राणनाथ,
जो डोले मन मुरली मधुर सुनाना,
जीवन ले जाना उस पार साँवरे,
हे गोविंद..
प्रेम प्रीत लगाना प्रीतम मनमीत ऐसी,
की निभ जाए मरते दम तक मोहन,
सिवा इसके कोई चाहत ना हो नाथ,
चाह ना हो कुछ और माँगू मनमीत,
कान्हा बिन जीना बेकार हो साँवरे,
मनमंदिर में आन बिराजो घट घटवासी,
मोहे अपना बना लो मनमोहन मनमीत,
मेरे स्वामी साँवरे सरकार..✍🏼🐦
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