हम दोनों के बीच,,
महज उतना ही फासला है,,,कि
मैं हमेशा"मैं"कहती हूं और,,तुम हमेशा"हम"..
तुम बातों की नजदीकियों में,,बड़ी बेसब्री से
मुझे ढूंढते हो और,,मैं तुम्हें,,अपनी खुद की सोच में..
तुम लगातार कोशिश करते हो,,दोनों को"हम"
बनाने में,, और मैं भागती हूं इस"हम"के बंधन से,,
क्योंकि मैं आजादी चाहती हूं,, मुझे लगता है कि
जैसे,,कोई कैद करना चाहता है फिर से,, मुझे
एक और बंधन में,, शायद संभव नहीं है मेरे लिए
फिर एक पिंजरे में कैद होना,,जो तुम समझ नहीं
पा रहे हो,, अब थक गई हूं,,नींद आ रही है,,,
सुकून चाहिए जिंदगी में,,,एक डर नहीं,,,
और यकीनन कभी कभी लगता है कि,,, तुम मुझे
डराते हो,,, मुझे कैद करके...✍️
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