Su'Neel Kumar   (नील (Neel_The_Poet))
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Joined 12 November 2019


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12 HOURS AGO

जंगल में एक हाथी रहता था। हाथी कहता कि चींटियों मैं आपका एकमात्र रक्षक हूँ। और जब हाथी चलता तो हज़ारों चींटी उसके पैरों तले दबकर मर जाती। हाथी ने कुछ लालची चींटी को ये लालच दे रखा था कि मैं तुम्हें राजकाज में ऊँचा पद दूँगा बस तुम्हें मेरी जय जयकार करनी है। चींटियों के मरने की इस घटना को लालची चींटी जयघोष के साथ इस तरह पेश करती कि "जो चींटी मर रही हैं उन्हें स्वर्ग मिल रहा है, दुखों से मुक्ति मिल रही है।" हाथी अब आश्वस्त है कि उसकी ताक़त कभी कम न होगी।

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YESTERDAY AT 10:08

मैं जब उसकी नज़रों के तरकश देखता हूँ,
अपने बचने बचाने की कश्मकश देखता हूँ।

वो एक बार जब तीर नज़र से छोड़ देते हैं,
मरने वाले को मैं फिर दिलकश देखता हूँ।

एक बार मना कर देता हूँ पर जब नज़र से,
पिलाती हो तुम ख़ुद को मयकश देखता हूँ।

देर रात तक मेरे अरमान थकते नहीं हैं नील,
मैं अपने जज़्बातों को मेहनतकश देखता हूँ।

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30 APR AT 9:55

दर्द दिल के बहुत ख़ास होते हैं,
जाने ये लोग क्यों उदास होते हैं।

कौन जाता है दूर मोहब्बत करके,
चाहने वाले तो दिल के पास होते हैं।

ज़िंदगी के पल अच्छे हों या बुरे हों
सुकून देते हैं, जीने की आस होते हैं।

रूह को कोई क्या ओढ़नी ओढाये,
ज़माने में बस तन के लिबास होते हैं।

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29 APR AT 23:23

एक ताज दूसरे ताज को निहारता है,
रब जाने कौन किस को निखारता है।

तेरी जादूगरी को मेरा सलाम है मौला,
ज़मीन पे ऐसे ऐसे करिश्मे उतारता है।

यही प्यार है तू उसे पुकारता चले जा,
उसकी मोहब्बत है वो तुझे पुकारता है।

तुम्हारे दिन का हमें तो कुछ पता नहीं,
मगर ये शख्स तन्हा दिन गुज़ारता है।

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29 APR AT 10:03

ख़त में जो लिखी थी वो मोहब्बत माँगता हूँ,
मेरी ज़िंदगी का नसीब वो उल्फ़त माँगता हूँ।

तुमने अदाओं का तफ़सील से ज़िक्र किया,
मैं तुम से कुछ लम्हों की मोहलत माँगता हूँ।

मेरे रब मुझे उसके दीदार में सुकूँ मिलता है,
दुनिया जहाँ के मसाईल से फुर्सत माँगता हूँ।

तुमने लिखा है तेरी जुल्फ़ों में रात ठहरी है,
मैं उस छाँव के तले थोड़ी राहत माँगता हूँ।

अब आज मौसम है फूल, कली, बहारों का,
मैं खुश्बू का साथ, इत्र की संगत माँगता हूँ।

तमन्ना बेताब है, मेरे हर जज़्बात में गुलाब है,
इन का इज़हार करने की इजाज़त माँगता हूँ।

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28 APR AT 11:30

दिल की किताब में जब से ग़ुलाब रखा है,
मेरे दिल ने दिल में टुकड़ा ख़्वाब रखा है।

तू मेरी मोहब्बत पर असल में ही फ़िदा है,
तो बता क्यों ये लफ़्ज़ों का नक़ाब रखा है।

अब कुछ देर तुम भी परेशां हो कर देखो,
हमने दिल को इतने बरसों बेताब रखा है।

जहाँ से तुम ये ग़ज़ल समझना बंद करोगे,
वहीं पर तुम्हारे सवाल का ज़वाब रखा है।

इन आँखों को हमने तालीम ही ऐसी दी है,
कौन कहता है तेरे चेहरे पर शबाब रखा है।

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27 APR AT 23:59

जबसे नैनों ने सपने साजन के सजाए हैं,
चाँद और तारे मेरे ख़्यालों में लहराए हैं।

जब भी बातों बातों में उनकी बात छिड़ी,
ख़ुशी से झूमें हैं मगर लाज से शर्माए हैं।

तुम्हारी मोहब्बत की खुश्बू है ग़ज़ल में,
लफ़्ज़ दर लफ्ज़ मेरे जज़्बात महकाए हैं।

इन नज़रों ने आज आसमान को निहारा,
बुलंदियों के परिंदे हवाओं में लहराए हैं।

तेरी नरम जुल्फों को इक बार छू लिया,
हसरत के देखता हूँ तो पर निकल आए हैं।

मेरे चेहरे पर तेरा चेहरा बयाँ न हो जाये,
हम चुप होते होते हंसे और मुस्कुराए हैं।

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26 APR AT 6:12

एक मुलाकात के लिए ये बहाने बने हैं,
हम शरीफ़ थे और अब सयाने बने हैं।

हमें ये जग शोख हसीं नज़र आने लगा,
हम जब से मस्त पागल, दीवाने बने हैं।

जाने क्या नज़रों पर जादू चला उन का,
धूप के दामन पे क़ीमती नज़राने बने हैं।

मैं और मेरी तन्हाई तेरी और लौट आये,
मुसाफ़िर को सराय जैसे ठिकाने बने हैं।

ख़ुद खोया खोया, डूबा डूबा रहता हूँ मैं,
तेरी यादों और बातों में मयखाने बने हैं।

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21 APR AT 13:26

तेरे इश्क़ की खुश्बू ग़ुलाब में भी न मिलेगी,
शोखियाँ तेरे जैसी शबाब में भी न मिलेगी।

तेरे नज़दीक आकर ऐसा लगता है मुझको,
ये रंग, रूप, ताज़गी ख़्वाब में भी न मिलेगी।

मन में झिलमिलाती है तेरी झिलमिल सी,
ऐसी ठंडक कहीं माहताब में भी न मिलेगी।

झूठ कहते हैं सब मोहब्बत ग़ज़ल में होती है,
महजबीं शायरी तो किताब में भी न मिलेगी।

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16 APR AT 20:16

तुम्हें क़रीब से देखने की चाह रहती है,
उस ख़ुशनसीब घड़ी पे निगाह रहती है।

आजकल दिन जैसे भी गुज़रते हैं मेरे,
शाम मायूस होती है रात तबाह रहती है।

तुम को निहारना आहा से शुरू होता है,
तुम जाते हो तो होंठों पर आह रहती है।

एक दिल है वो भी खोया खोया सा है,
एक तबियत है जो बेघर गुमराह रहती है।

मेरी मोहब्बत में तो अमावस ठहर गई है,
ये पूर्णिमा तो हर महीने हर माह रहती है।

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