हर खुशी हैं लोगों के दामन में,
पर हसने का वक्त नहींं।
दिन रात दौडती दुनिया में,
बस जिंदगी के लिए वक्त नहींं।
माँ की लोरी,प्यार का एहसाँस तो हैं,
पर माँ को माँ बुलाने का वक्त नहींं।
सारे नाम,नंबर मोबाईल में सेव हैं,
पर उनसे बात,उनसे दोस्ती करने का वक्त नहींं।
आंखो में निंद भरी हैं,
पर सोने का वक्त नहींं।
दिल में घम हैं,
पर किसीके पास बोलने बताने जताने का वक्त नहींं।
पैसे की दौड में इतना दौडे की,
थकने के लिए वक्त नहींं।
किसी और की क्या बात करे जनाब ?
जब अपनों के लिए ही वक्त नहींं।
की, ए-इंसान तू इतना भी मत घीर } (२)
के कोई मर जाए तो भी तेरे पास वक्त नहींं।
वो कहते हैं ना की, "जैसी करनी वैसी भरनी"
कुछ ऐसा हीं ना हो जाऐ } (२)
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