हमें इस बात का ग़म तो नहीं, हमें ग़म है
ग़म है इस बात का इस शहर में मातम है
हलक के नीचे ही जब, उतार ना पाए तो
फर्क क्या गंगाजल, या आबे जमजम है
वैसे तो दिलों में जख़्म है हजारों सभी के
दिल को तसल्ली दी कहा यह तो कम है
बुझी राख सी होती हो ज़िंदगी जिसकी
उसके लिए शोले की ये जलन मरहम है
ज़िंदगी के सफहे, धुंधले से हो गए अब
ज़िंदा है फिर भी आदमी, कैसा वहम है
कद इतना तो है ज़मीं से आस्मान छू लें
हमारे हाथ में अपने मुल्क का परचम है
हादसों से जूझने में, ये साल गुजर गया
इस नये साल में देखें,क्या क्या करम है
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