रात सुहानी कहे कहानी, ज़िंदगी करे अपनी मनमानी !
भले अंधेरी काल हूं मैं, चाँद सितारों की ढाल हूं मैं !
दिखूँ ऊपर से चाहे कुछ भी, राज़ समाई है कई मुझमें सबकी !
आराम करे,कोई गहरी निद्रा में देखे हैं सपने, मौज करे कोई,कोई रोए संग मेरे !
जिस तरह चाहे जो मुझको, साथ निभाऊं वैसा मैं उनका !
भेद भाव ना जानूं हूं मैं, रहूं बराबर सबके साथ एक जैसे !
किसी के लिए सुहानी रात हूं मैं, तो किसी के लिए जीवन का अभिशाप हूं मैं !
क़रीब से देखो दिखेंगे कई ढंग मेरे, रंग नहीं बदलती पर बस एक ही रंग हैं मेरे !
दाग ढकूं मैं,पट बनूं किसी का, अपनों से भी अश्रु पीड़ा ढकूँ मैं सबका !
सरल सुखी भले दिखूं हूं मैं, विरह भरे रहस्य तो है कई भीतर भी है मेरे !
एक विचित्र बेला हूं मैं, समय के पहलू का बस एक खेला हूं मैं !
समझ पाना इतना सरल नहीं मुझको, क्योंकि रोशनी का एक अलग आगाज़ हूं मैं !
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