न मन में कुछ रख सकूं,न जुबां से कुछ कहा जाए।
न भीड़ में रह सकूं,न तन्हाई में जिया जाए।
जिंदगी उलझनों में,बीत रही है कुछ इस तरह;
न मर सकूं,न अब जिया जाए।
न उदास रह सकूं,न चेहरे पे हंसी आए।
न आफिस में दिल लगा सकूं,न घर में अब रहा जाए।
कि मन रूआंसा है,अब कुछ इस तरह।
न सर किसी कंधे पे रख सकूं,न किसी से गले लगा जाए।
जिंदगी उलझनों में,बीत रही है कुछ इस तरह;
न मर सकूं,न अब जिया जाए।
न रस्ते में रह सकूं, न मंजिल तक पहुंचा जाए।
न मजबूरी बता सकूं,न किसी से ग़म छुपाया जाए।
न उसके बगैर रह सकूं,न उसका हुआ जाए।
जिंदगी उलझनों में,बीत रही है कुछ इस तरह;
न मर सकूं,न अब जिया जाए।
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