Sourabh Shaleen   (Shaleen)
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Joined 10 November 2019


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18 APR AT 1:08

I didn't
mean that🥹🥲





I literally
meant it 🫣🤫



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17 APR AT 23:30

Fine dining 😶





Bhandara 😆

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7 APR AT 0:08

Ego < relationship < self-respect
🙂

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28 MAR AT 7:36

"शायरों की बातें कभी हक़ीक़त;
तो कभी झूठ का पुलिंदा रहती हैं।

और कुछ तुकबंदियां तो 'शालीन'
बड़े शान से शर्मिंदा रहती हैं!"

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28 MAR AT 7:29

के लिए ऊँचाइयों के डर से पार पाना होता है।

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28 MAR AT 7:16

is also looking for us.

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24 MAR AT 18:37

Sometimes, being ordinary is not ordinary

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24 MAR AT 16:44

क़ब्र में ना क़दम पड़ जाये।
अब्र के इंतज़ार में
कहीं गुलशन ना उजड़ जाये!

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18 MAR AT 12:27

भोर भोर, भागा अंधियारा ,
सूरज निकला, जगा जग सारा।
दरस को प्रीतम तरसे अँखियाँ
तुझको दिल ढूँढे बंजारा।

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17 MAR AT 22:32







ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी।

दैव मेरे भाग्य में है क्या बदा
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?
या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी
चू पड़ूँगी या कमल के फूल में ?

बह गई उस काल कुछ ऐसी हवा
वह समुन्दर की ओर आई अनमनी
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।

लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लों कुछ और ही देता है कर।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’



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