'सभ्य समाज में बेटियां'
क्यों खौफ है दिशाओं में, क्यों आक्रांत हैं ये बेटियां;
सभ्य इस समाज में क्यों मिलती हैं लाशबंद पेटियां?
हो तर जब निज-रक्त से, स्व-जन्म को कोसती बेटियाँ,
चीख-पुकार उनकी भला, क्यूँ न तोड़ती बंधन-बेड़ियाँ?
हैं पिशाचों के ये झुंड जो, निडर नोचते इन्हे यहाँ- वहाँ,
क्यूँ नहीं हमारी ये सभ्यता, रोकती इन्हे, पूछती हैं बेटियां ।
तेजाब इनका, हवस इनकी, दुष्कृत्य भी हैवानों ने किया।
फिर क्यूँ दोषी बनकर भला, इंसाफ को भटकती बेटियां?
पंछियों-सी मासूम वो, नन्ही-सी थी वो परी,
गिद्ध ये आया कहाँ से, नोच प्राण जिसने लिया?
ये गिद्ध कोई परिचित ही था या जीव कोई अंजान था?
मूल प्रश्न तो बस इक यही, क्यूँ नहीं सुरक्षित हैं बेटियां?
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