मैंने प्रेम किया जब भी
तो इतना किया कि मैं घर जैसी हो जाऊं
दुनिया भर में घूमने के बाद अंत में जब वो लौटे तो
पहुंचे मुझ तक ही
और मैं बनी भी उन सबके लिए घर जिनसे प्रेम किया मैंने
अब जब वो लौटते हैं तो खुद की कहानियां लेकर लौटते हैं
खुशियां लेकर आते हैं कभी
कभी परेशानियां लेकर लौटते हैं
वो जैसे मुझमें रहते हैं बाहर नहीं रह पाते कभी
राज मुझसे जो कहते हैं किसी और से नहीं कह पाते कभी
पर अब जब मैं ठीक वैसा घर हो चुकीं हूं जैसा मैं चाहती थी
तो मन के किसी कोने में एक डर सा होता है
कि घर का कोई और घर नहीं होता है
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