संतृप्त   (Gaṇeśa)
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Joined 19 September 2021


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Joined 19 September 2021
27 MAR AT 20:42

स्याह रात को
अट्टालिका पे बैठकर
ओढ़े हुए प्रेम की चादर
जब देखते हैं चांद की
सादगी, धैर्य को
लगन और शौर्य को
प्रकाश के अभाव में भी
चमककर रात को रोशन करने को
कल्पनाओं के प्रेम - प्रतीक होने को

मैं महसूस कर पाता हूं
वो सबकुछ जो चांद में है
लेकिन चाहत हमेशा रहती है
एक चांद को पाने की
जो बिल्कुल चांद का परावर्तन है
निहाय पाक और स्याह काला

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14 MAR AT 13:26

मैंने अंधेरों में तेरी रौशनी को संजोये रखा
ज़िन्दगी की हर लड़ी में तुझे पिरोये रखा

हसीन ख़्वाबों के किरदारों की सरदार तु
तूने अदाकारी में खुदको ख़ुदमे खोए रखा

हर घड़ी सब्र का इम्तेहान होता रहा गणेश
बेसब्री के इस जाल में सब्र को निगोए रखा

अब अंत करीब है हर पल है आखिरी
पेड़ बनने के ख्वाब में ख़ुदको ज़मीन में बोए रखा

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Happy Birthday Laado🥳

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3 DEC 2023 AT 3:50

"मशरूफ इतने तेरे इश्क़ में होकर
हम तेरे इश्क़ से ही महरूम रह गए"

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2 NOV 2023 AT 22:54

INSTANT INTROSPECTION

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14 SEP 2023 AT 7:29

An Enigma

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18 JUL 2023 AT 2:18

मिलन की आस की सांसों पे जो पलते हो तुम
ना जाने कितने गमों का घुट निगलते हो तुम

बरसात के मौसम में भी कहीं सूखा है क्या
आंखों में नमी लेकर जो चलते हो तुम

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17 JUL 2023 AT 1:08

पढ़ते रहते हैं रात-दिन तेरी शान के कसीदे
फिर भी नामुमकिन-सा है तुझे समझना

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13 JUL 2023 AT 0:15

अजीब इत्तेफ़ाक है
चंचल ह्रदय की कोख में
उठ रहा है धुआं
मगर ना कोई आग है
ना ही कोई राख है
तमाम स्वप्न आंख में
चुनौतियां असंख्य सामने
प्रतिदिन हैं खुद को तोलते
खुद के ही कल के सामने
मगर ना कोई तराजू है
ना ही कोई बाट है
अजीब इत्तेफ़ाक है
हैं ना

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10 JUL 2023 AT 23:37

ख्वाहिश है मेरी तुझमें फना होने की
स्याह इंतजार से मुझको बेकरार न कर

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