समीक्षा   (निःस्पृह)
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Joined 15 February 2019


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परिवर्तनशील समाज का अग्रशील न हो पाना
कारण है
एक पीढ़ी का दूसरी पीढ़ी को
अपने जैसा ही बनाए रखने की जिद।
(कैप्शन)

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कुछ तो है हम में जो हमसा नही है
वो जो है न
बहुत शुद्ध है
लेकिन
संदिग्ध सा है
जैसे अभी
जो लिखा जा रहा है
वो कोई और है
अगर यही पूरे समय स्थिर हो जाए
तो शायद......
अकल्पनीय
अविस्मरणीय
अलौकिक हो जाए
कौन हो तुम
कहां से आए हो?
इतने तनिक से क्षणों की ये कहानी है
जिसका नाम है जीवन
ऐसे कौन से दोष है
जिनसे रज और तम संबंधी बने बैठे है
माना कि समरसता स्वाभाविक है
लेकिन इन दोनो की ही अधिकता क्यों
है जीवन में
उम्र पड़ावों को पार करती जा रही
दौर सारे उघाड़ के सड़कों को रौंदती जा रही
मेरे मौन अधर
और बेवाक कर्ण
बेसुध गिरे सो रहे
और हम ठाडे है ठोढ़ी
पर चित्त दिए रो रहे।

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तुम्हारा आना मेरे जीवन में
विशेष ही नहीं
कुछ अलग सा हुआ
कहते है जो आपके एकांत
को मिटा दे या आपके एकाकीपन
को हिला दे तो सब बदल जाता है।
रोजमर्रा की गतिविधियों में खुद
को खोते देखा है
और फिर कभी कभी खुद को खोकर
पाना कठिन भी हो जाता है।
तुम्हारा आना मेरे जीवन में शुभता
लेकर आया
मेरे विचार आज भी उतने ही
स्वतंत्र है जैसे पहले हुआ करते थे।
मेरे एकांत में तुम आए
लेकिन मेरे एकाकी में तुमने
दस्तक नहीं दी।
ये हो तुम
मौन चित्त धैर्य से परिपूर्ण
तुम मेरे स्पर्श मात्र से ममत्व को
चख लेते हो
मौन अधरों की मुस्कुराहट से मेरे
मन को हर लेते हो।

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जीवन चक्र कठिन है
हर कोई एक दूसरे की प्रतिपूर्ति क्षतिपूर्ति दोनों कर रहा है
हम किसी के जीवन में प्रेम और शांति है
तो किसी के जीवन में अशांति और दुख है
हमारा होना एक मात्र खेल है
हम स्वयं में जागे है
किंतु उस जागने की स्वीकृति नहीं
स्वयं के लिए ज्ञाता है
परंतु किसी और के समक्ष हम अज्ञानी है
अपनी हर एक कमी को जानने के बावजूद हम स्वीकृति नहीं देते।
यह एक पक्ष.....
कहीं कही हम स्वीकृति देते भी है
उसकी कद्र नहीं होती
आपको दूसरे तराजू में तौल दिया जाता है।
माने
चक्र चलता जा रहा है
हम पूर्णिमा के चांद नहीं है
ये कैसे भुला जा सकता है
अमावस हमारी राह तक रही
अनंत की यात्रा जड़ से चेतन की
किरदार बदल रहा है
हम नहीं...
न मैं...
न तुम....

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3 DEC 2023 AT 23:05

Our own views
towards life
are actually
our path of
our soul' s journey...

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26 NOV 2023 AT 9:38

लड़को का मां बाप का प्यार
ना समझ पाना लाज़मी है,
गैरों के साथ ये जो
महीनों नहीं गुजारते है...

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10 NOV 2023 AT 15:47

मन के थकने से शरीर निष्काम हो जाता है।

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5 AUG 2023 AT 23:32

बेगानेपन की खुशबू
चंद लम्हों में
उम्र की दहशत से रूबरू करा देती है

रूह भागती है
उस पतझड़ बने सावन में
जो भीग कर
अपने यौवन को जी चुकी थी।

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29 JUL 2023 AT 12:42

बुढ़ापे की तरफ अग्रसर लोग न जाने क्यों इतना कुंठाओं से ग्रसित हो जाते है?


कारण -
जब समय था जीवन जीने का तब दूसरों के हिसाब से स्वयं को चलाया
अब वही प्रकरण को दोहराना कर्त्तव्यपरायणता लगती है।

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29 JUL 2023 AT 6:27

ममत्व की दहलीज को
जब एक युवती स्पर्श करती है,
उसे याद आता है
अपनी मां की ओट में छिप जाना
अपने केशों में चाहती है
अपनी मां की उंगलियों की छुअन,
उसमें बनने वाला वात्सल्य ढूंढता है
वही बचपन की थपकन और लाड़

लेकिन नहीं मिल पाता
उस दहलीज पर बैठ कर ये सब
कारण है समाज
और स्त्री का स्त्री के प्रति आक्रोश।

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