जाने कहाँ अब खो गया बचपन,
आयु के इस पड़ाव पर।
अब तो जैसा खो ही गया है, वो अल्हड़पन,
वो चंचलता, वो मासूमियत और भोलापन।
जो कंधे थे कल तक बिल्कुल हल्के,
अब जीवन का भार उठते हैं।
अर्जित कर आज का अनुभव और ज्ञान,
अपना नया कल बनाते हैं।
पीछे जो देखा पलट कर, आज बहुत बदला पाया,
था जो कल वो आज नहीं अपने पास,
जो आज है वो कल ना था अपना पास,
इसको भली भांति समझा और जाना है ।
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