Singh Komal Vinod   (Flying Birds)
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Legallyyy Poeticcc!

Speak shallow_ just mine with ink.
Its deeper, darker but dear.
Joined 21 March 2023


Legallyyy Poeticcc!

Speak shallow_ just mine with ink.
Its deeper, darker but dear.
Joined 21 March 2023
27 MAR AT 11:25

इस कठिन - कठोर की माया में ,
मेरा बहना हर क्षण तरल रहे !
कुछ लिखा करूँ - कुछ पढ़ लूँ मैं ,
बस जीवन इतना सरल रहे !

हर शून्य - अधिक ; हर भय - हर भ्रम को ,
बस मन से लिख दूँ - मन के श्रम को ...

इस मृदुला का कोलाहल थामे ,
मौन हृदय का अटल रहे !
कुछ लिखा करूँ - कुछ पढ़ लूँ मैं ,
बस जीवन इतना सरल रहे !

सत्य - असत्य के सहज शोध को ,
कुछ अजय लिखूँ हर ज्वलित क्रोध को ...

हर भाव - भँवर के दलदल में ,
शोभित यौवन का कमल रहे !
कुछ लिखा करूँ - कुछ पढ़ लूँ मैं ,
बस जीवन इतना सरल रहे !

- कोमल ' विनोद '

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18 MAR AT 11:51

Manifest, meditate and make it happen. It is a long journey, lonely journey and an endless too but the progress demands penance.

If you have chosen it, then chase it!
Not everyone get a chance of ruining sleeps and burning the midnight oil for a PURPOSE. Carry this responsibility with a care because you are being awaited by your aim too.

If your goals are making you appear SELFISH then you are on the absolute right track.

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6 MAR AT 8:19

बाक़ी नहीं है कुछ मगर
दीदार अब भी चाहिए...
आख़िर दुशमनी भी दूर से कबतक निभाई जाएगी??

- कोमल ' विनोद '

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2 MAR AT 18:46

OCEANIC HEARTS ARE OFTEN SALINE.

So beware before drowning !

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23 FEB AT 11:35

राधा का रंग कितना ही गहरा क्यूँ न हो ,
रुक्मिणी द्वारा लिखा एक पत्र पढ़कर
श्री कृष्ण का सुध-बुध खो देना तय है !

कृष्ण राधा के लिए संसार त्याग सकते हैं
और रुक्मिणी के लिए राधा को...

प्रेम दोनों से है, बस अंतर केवल इतना है कि
राधा को केवल प्रेम प्राप्त है और रुक्मिणी को
प्रेम करने का अधिकार भी !!

Not just acknowledgement ,
it requires legitimate authority too.

- कोमल 'विनोद'

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11 FEB AT 18:34

जिसकी बेरुख़ी पर हक़ से फ़रियाद कर सकूँ ,
कोई चाहिए मुझे भी जिसको याद कर सकूँ !

जिसे फ़िक्र हो मेरी - वो जो मेरा नाम ले ,
जिसकी छाँव में ये दिल सुकून से आराम ले...

जिसकी कैद में यूँ खुदक़ो मैं आज़ाद कर सकूँ ,
कोई चाहिए मुझे भी जिसको याद कर सकूँ !

जो पास मेरे आए तो निखर सी जाऊँ मैं ,
वो जो दूर कभी जाए तो बिखर सी जाऊँ मैं...

जिसपर मरकर अपनी ख़ैरियत आबाद कर सकूँ ,
कोई चाहिए मुझे भी जिसको याद कर सकूँ !

शायर ना सही बस लफ्ज़ों का मुरीद हो ,
सुनकर मेरी नज़्में जिसकी शामें ईद हो...

जिसकी चाह में ये ज़िन्दगी बर्बाद कर सकूँ ,
कोई चाहिए मुझे भी जिसको याद कर सकूँ !

- कोमल 'विनोद'


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3 FEB AT 18:12

गैरों की फ़िक्र छोड़ें - अपना हाल याद रखें..
जवाबों में न उलझें - बस सवाल याद रखें..
न यूँ हिचकियों को बाँटें मेरी रूह का पता ,
बस अपनी ओर से लिखे सभी मलाल याद रखें !

- कोमल 'विनोद'

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1 FEB AT 10:35

ख़ुदको जो मैं इतना बचाती हूँ..
न तो धूप में निकलतीं हूँ ,
न आईने में नज़र आती हूँ...

फिर भी ;
फिर भी , मेरी कोशिशें हर बार कम पड़ जाती हैं ...
मुझे तोड़ती हुई , उसकी उम्मीदों से लड़ जाती हैं ...

जब भी ;
जब भी , कोई झोंखा मेरी सादगी सवार जाता है...
क्यों बस उसी वक़्त उसका यक़ीन हार जाता है....?

मेरा साया ;
मेरा साया तक फ़िज़ा में बिखरना छोड़ दे....!
जो वो बेचैनी अपनी और ये डरना छोड़ दे...!

कभी समझना तो कभी समझाना मुश्क़िल लगता है..!
सच कहूँ तो और अब निभाना मुश्किल लगता है...!!!

- कोमल 'विनोद'

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18 JAN AT 14:37

(2/2)

मानव ने लाँघी मर्यादा - तुम कब तक धीरज धारोगे ?
आहत हुए वो मन कहते - तुम अब कब पीड़ा हारोगे ?

जब से तुम यूँ मौन हुए - हर निश्छल मन पर वार हुआ..
पीड़ा और पापो से भारी - ये राम रचित संसार हुआ..

न मानव मन पर घाव रहे - नाही न्याय की हानि हो ,
हम चाहे मन की गंगा में - केवल करुणा का पानी हो !

तुमने जग का निर्माण किया - तुमने ये मोह पिरोया है ..
हर अंतरमन का रावण जागा - अब तक ये राम क्यों सोया है ?

हे उठो राम !
लो बाण धरो, और कलयुग का अब नाश करो..
सतयुग का पावन दीप जला,
रौशन काशी - कैलाश करो !

- कोमल 'विनोद'

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18 JAN AT 14:20

हे राम ! (1/2)
✍🏻 - 25/04/2020

हे राम धरो पग धरती पर और फिर से पावन कर डालो !
वीरान हुई इस वसुधा को फिर से मनभावन कर डालो !

न दयाभाव की धूप यहाँ - ना मानवता की क्यारी है..
झूठे मुख के बोल यहाँ - हर सत्य वचन पर भारी है !

युग से युग बदले हैं और बदली सबकी वाणी है,
पाषाण हो चुके मानव मन - यहाँ कपटी हर एक प्राणी है !

पर्वत पक्षी तो छोडो हमने नारायण तक बाँटे हैं ,
धर्म जात की चौख़ट पर, एक - दूजे के सर काटे हैं !

न हनुमान सा भक्त यहाँ - नाही लक्ष्मण सा भाई है..
यहाँ प्रेम स्नेह के सागर में - तरती केवल चतुराई है !

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