simran singh   (simran)
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Joined 4 April 2020


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Joined 4 April 2020
4 MAY AT 13:25

I don't care

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14 APR AT 13:05

जीवन खुरचते खुरचते मै कोशिश कर रही हूं उस अच्छे अंत तक पहुंचने की जो अच्छा आरंभ हो या
शायद और बुरे अंत का आरंभ भी...?
ज्ञात नही !

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13 APR AT 20:52

कभी कभी सोचती हूं जिन घरों में क्लेश नही होता होगा शांति होती होगी , एक पापा जैसे शख्स भी होते होंगे जो सब के लिए कमाकर लाते होंगे , कैसे होते होंगे वो घर ? शायद खुदा घर जैसे उनको शांति के लिए मंदिर नही जाना होता होगा...!
सोचती हूं...

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4 MAR AT 20:26

अब हम हमारे लिए , एक दूसरे के लिए कुछ नही लिखते। बस खुद के लिए ही लिखते है

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29 FEB AT 20:53

भयभीत... कितना भयभीत ? मुझे नही पता
दुःख...कितना दुःख ? मुझे नही पता
बस कुछ गड़ गया है भीतर
किसी प्राचीन दुर्ग सा
काली काई लगा
मौन लिए
अंतस....

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26 FEB AT 20:17

ये जो बहुत अनुशासित सा समाज लग रहा क्या सच मे ऐसा ही है ?
अगर ऐसा ही तो मै या फिर मेरे जैसे कुछ सरफिरे जो अनुशासनहीनता प्रिय है तो वो क्या है ?
दोनों तरह की दुनियां में से कौन सी छल है ? किसके साथ तर्कसंगत न्याय नही ?

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22 FEB AT 22:48

होता है ये कल बेवफा
ये आता नही चल रहा...

मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता...

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20 FEB AT 19:31

तस्वीरें बनती गई
मै उनमें हाशिए लगाती गई
वक्त रंग-बेरंग छींटे भरता रहा
पर एक काला धब्बा एकदम केंद्रित
ठीक बीचोबीच...

ये जो काला धब्बा है
ये घूरता है मुझे , इसको मै
किस रंग की रंगत से छिपाऊ
या इसी धब्बे को अतिरिक्त आकर्षक बना
अमूर्त रचना उकेरू...

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19 FEB AT 22:19

मोहब्बत....ये मुझ कायर की तासीर नही बन सकती
नही आता मुझे पहाड़ी के उस पार घरौंदे बनाना
वानगोग जैसे रंगो का घोल पी जाना
पते से लापता दर बदर हो जाना
उन्माद को छूना
नही आता
मुझे

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18 FEB AT 21:08

आंखों की पिछली पगडंडी पर चलते चलते
मेरे हाथ लगी एक लाल भूरी रेखा जैसे वह सिरा हो
मेरे प्रागैतिहासिक काल की स्लेटी रंग की यादें की चित्राकृति तक मुझे पहुंचाने का
जो प्राचीन होते हुए भी , कुछ धुंधली होते हुए भी
कुछ महकी महकी सी ताजे रंगों की सुगंध लिए है

सिमरन

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