पनप रहे पनाहों में उसकी जिसके आँचल से आये हैं, वो विशाल अम्बर समान, हम तो बस उसके साये हैं। लश्कर उसके, महफ़िल उसकी हम तो बस अभी ही आये हैं, गौरव शौर्य शूर छाती उसकी हम बस उसकी भुजाएं हैं।
फैसले भी करने हैं, फांसले भी रखने हैं, ताल्लुख़ भी बनाने हैं, ताले भी रखने हैं, मत पूछ ज़िन्दगी क्या ख्वाईश है, रेगिस्तान में तो बसना है पर गुलाब भी चखने हैं।
मंज़िल तय थी तो रास्तों की फ़िकर कदमों ने करी ही नहीं, गिरे जब भी उठे खुद से, सिकंदरों ने शिकस्त की शिकन कभी आँखों में भरी ही नहीं। वो और थे जो घबराते थे, लड़खड़ाते सहम जाते थे, ये लहू लाल गरम लिए वीर बस आगे बढ़े जाते हैं, ज़ख्मों की परवाह करते नहीं, जरूत मरहम की कभी पड़ी ही नहीं।
तलफ़्फ़ुज़ ठीक था तो ख़राब शायरी पर भी वाहवाही बटोर ली, लहज़ा ठीक था तो तीखी बात पर भी हामी मनचाही बटोर ली, ये भी हुनर ही था उनमें, जहाँ जाते सबको अपना बना आते थे, चले गए हैं आज तो सारी महफ़िलों से धुन शहनाई की बटोर ली।
Monday mild, Tuesday wild! Somedays flipper, somedays flicker Neither aware bout her wants, nor can I pick her! I just gaze her universe smear. Amongst all the swirling tornadoes, heavy smokes and all what god knows, She stands there resting in her own Wood's solitude going by all the highs all the lows.
बड़ी बेतरतीबी से रात निहार रहे हैं, ख़्वाब दिख रहे हैं, पर हक़ीक़त अख्तियार रहे हैं, मशक्क़त को माशूका बना रखा है, गुरूर से हर रोज़ हार रहे हैं, तक़दीर का दिया बिखरा है, उसे हर रोज सवार रहे हैं...
गिरे तो गिरे हैं, गिरे क्या नज़रों से, गिरे रहे सिरफिरे हैं, उठेंगे हवाओं के सहारे से, सहारे के कम कौनसे सिरे हैं, उठेंगे धूप के फवारे से, फवारे कम नहीं निरे हैं, उठेंगे बिजली के शरारे से, शरारे सहम नहीं तिरे हैं... गिरे तो गिरे हैं, गिरे क्या नज़रों से, गिरे रहे सिरफिरे है...