मैं अक्सर सोचता हूं;
मेरी आख़िरी कविता_
किस पर लिखी जाएगी.?!
ये आखिरी कविता,
किसी के आखिरी प्रेम में पनपे नरम
पल्लवों को ओस बनकर ठंडक देगी,
या फिर क्रांति की बात करते हुए,
धानी परिधान ओढ़े_
स्वयं को आग के हवाले कर,
शहादत ले लेगी।
अथवा ब्रम्हांड के किसी अन्य,
अनछुए भौतिक आयाम को_
परिभाषित करने के लिए
अपने शब्द निःसंकोच बिखेर देगी।
और अमरत्व ले लेगी।
तब मौन आंखों से,
इन्हीं प्रश्नों के झंझावतों
से निरुत्तर होकर_
मैं तुम्हारी तरफ़ देखता हूं।
"और फिर_ मुस्कुराता हूं!"
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