बेरहमी से कुचला अरमानों को मेरे
सपनों को मिट्टी में दफना दिया
उम्मीदों को जलाकर धुआं सा छोड़ दिया
चरित्र को उछाल दिया बाजारों में
कभी हाथों से तो कभी शब्दो से मारा मुझे
अभागिन,मनहूस, शनि, चरित्रहीन, वैश्य, बाजारु
कहकर भी बुलाया मुझे
अपनो में भी तिरस्कारा मुझे
कभी संस्कारों पे तो कभी नियत पे बोला मुझे
कभी घर से तो कभी दिल से भी निकलने को कहा मुझे
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