श्वेता चौहान   (fem_activist (श्वेता))
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Joined 18 August 2019


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Joined 18 August 2019

तरक्की का कोई स्थाई पैमाना नहीं
जब तुम निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक
क्षमता के उच्चतम स्तर तक पहुंचते हो
तो ये तरक्की तुमसे छल कर
फिर से एक नई मंजिल तय कर लेती है
और फिर तुम भागने लगते हो
उस अगले लक्ष्य की ओर
बिना इस ओर ध्यान दिए
कि तुम्हारा पूर्व निर्धारित
वह लक्ष्य पूर्ण हो चुका है
इसलिए गौर करें तो
तरक्की के अनगिनत उदाहरण
होने के बावजूद यह अपरिभाषित है।

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तर्क की गहराई का पैमाना ज्ञान
तो भावनाओं की गहराई का मापन
आंसुओं की बूंद,

ये तर्क कभी भी भावना में नहीं बहे
पर भावनाएं कई बार तर्क में बहा करती हैं
जब तुम कहते हो कि वह चालाक है
तो तुम तर्क का सहारा लेते हो,

अगर तुम कहो कि वह थोड़ा चालाक है
तो यह तुम्हारी भावनाएं हैं
जो थोड़े के रूप में तुम में बाकी हैं।

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हाथ से रेत फिसलने के समान
यह जीवन निकल रहा है
फिर भी मैं खुद पर नहीं
रिश्तों, लोगों और बातों पर
ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रही हूं
जैसे कि मैं उस फिसलती हुई
रेत को फिर हाथों में उठा सकती हूं ।

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कोई दुनिया से
थका हारा इंसान
अंधेरे में ही
तो छिपना चाहता है
खुद से बातें करना चाहता है
खुद के बारे में जानना चाहता है
कोई अकेला सिर्फ इसलिए तो
अकेला नहीं है न
कि दुनिया ने उसे ठुकराया हो
हो सकता है वह जिद्दी व्यक्ति
खुद ही दुनिया ठुकराकर बैठा हो?

-



ये ज्यादतियों को
बेझिझक, बेहिसाब
खुदपर लुटाना
और फिर बेवजह
हर बात पर मुस्कुराना
क्या इससे भयावह
कुछ होगा भला?

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यथार्थ को स्वीकार कर हम
अपने खूबसूरत स्वप्नों को
इस तरह दरकिनार किए जा रहे हैं
जैसे भविष्य देखने का जिम्मा
हमारी इन आंखों ने
समय से उधार लिया हो
यदि ऐसा नहीं तो फिर क्यों
वे स्वप्न तुम्हारा यथार्थ नहीं बन सकते?
सवाल करो खुद से कि
क्यों हमारी यह आंखें
समय को ब्याज चुकाने काबिल नहीं?

-



लिखने से बह जाती है
मेरी सभी चिंताएं
और पूर्ण विराम लग जाता है
उन सभी शंकाओं पर
जिसके सहारे मेरा मन
मुझसे ही मुझको
दूर किए देता है
क्यों तुम समझते हो?
ये आदतन लिखना
मुझे इश्क़ ने सिखाया?
मानों तो हर मर्ज़ की दवा
ये लिखना है
और न मानों तो वैसे भी
हर दुख तुम्हें इश्क़ ने ही दिया है।

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कहने को तो मुझमें समझदारी
किसी साठ बरस के बुजुर्ग जैसी
पर मेरा मन किसी बालक से कम नहीं
बड़ी बड़ी बातों को समझ लेना
और छोटी छोटी बातों पर
बच्चे की तरह फुदकना
लेकिन हर बार समझदारी
मेरे बचपनें पर भारी पड़ी
जिम्मेदारियों के बोझ से मिली
मुझे बाहर निकलने की आज़ादी
जो कैद समान ही निकली
अदृश्य जंजीरें हर वक्त
मुझे जकड़े रहीं।

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कभी कभी जिंदगी में इतनी परेशानियां एक साथ सामने आ जाती हैं कि उनसे लड़ने से पहले हम हिम्मत हारने लगते है अपने भाग्य को कोसने लगते है क्योंकि लड़ने से बेहतर और आसान विकल्प है भाग्य को कोसना लेकिन इस तरह हम खुद के आस पास की ऊर्जा को उल्टा चला रहे होते है उसकी दिशाओं को नकारात्मक रूप देकर हम खुद को और भी मुश्किलों से घेर लेते हैं जिसका साफ सरल नाम अवसाद है। मौन रहकर भीतर से जंग लड़ना एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें बाहर से बेहतर और अंदर से खोखला कर देती है।

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कोई दुनिया से
थका हारा इंसान
अंधेरे में ही
तो छिपना चाहता है
खुद से बातें करना चाहता है
खुद के बारे में जानना चाहता है
कोई अकेला सिर्फ इसलिए तो
अकेला नहीं है न
कि दुनिया ने उसे ठुकराया हो
हो सकता है वह जिद्दी व्यक्ति
खुद ही दुनिया ठुकराकर बैठा हो?

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