Shubhi Porwal   (©शुभी)
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Joined 29 March 2017


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Joined 29 March 2017
4 MAR AT 0:08

सुकून और तुम।

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6 JAN AT 21:44

मैंने वो सब करने की कोशिश जो ये दुनिया कठिन मानती है,
काश! आपको गले लगाना भी नसीब हो पाता, पापाजी।🌸🤍

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23 NOV 2023 AT 21:28

मैं उससे फंसना चाहती थी,
मैं उसमें फंसना चाहती थी,
उसकी घड़ी और हाथों की उंगलियों सी,
उसके बालों तक,
कुछ भी होने को तैयार थी,
मैं तैयार थी,
उसकी मुस्कुराहट उसका इत्र होने को भी।

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6 NOV 2023 AT 22:27

डियर पापा जी,

जो अंजान रास्ते आप संग बहुत अपने लगते थे,
आज वहीं, जान - पहचान भी बहोत चुभने लगी है,
नहीं जानती क्या करूं क्या नहीं,
बस आपकी बेटी अब बहोत सीमित सी हो गई है।
सुकून की तलाश अब नहीं करती है वो,
अभी न जाओ छोड़ कर गाना भी अब उसको आंसुओं की ओर नहीं ले जाता है,
मगर न जाने क्यूं चिट्ठी न कोई संदेश पर आज भी उसका ज़ोर नहीं चलता है,
भले जताना छोड़ दिया हो उसने,
मगर तारों से न जाने क्यूं इतनी करीब सी हो गई है,
आपकी बेटी न जाने क्यूं इतनी अजीब सी हो गई है।

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8 OCT 2023 AT 21:56

यथार्थ प्रेम पर यकीन क्या किया,
मानो! दूरियों में भी करीबी सी लगती है।

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5 SEP 2023 AT 16:34

एक पत्र।





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29 AUG 2023 AT 21:59

इक पत्र!!







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22 JUN 2023 AT 22:31

आज लिखने को जब मैं आसमां निकली,
कई सवाल करते से ये पेड़, पक्षी, हवाएं और ये शाम निकली,

मुआयना किया जब इस दर्द का मैंने,
बरसती ये बूंदें ही तब कहीं मेरा आराम निकली,

बैर मुल्जिम से करके भी ये आंखें अफसोस जता बैठी,
बहते अश्कों में भी महफिल में बाहर मेरी मुस्कान निकली,

कि इस भरी महफ़िल में हर अपना महज़ इक भीड़ सा लगा,
कुछ यूं अपनों से मैं बहोत अनजान निकली,

कि शुभी, करना जरूरी नहीं भरोसा इस कदर,
कि शुभी, करना जरूरी नहीं भरोसा इस कदर,

कुछ यूं बंद होती आंख ने गहरी जब आह भरी,
तब अहसान सी खलती कहीं फिर हर इक सांस निकली।

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18 MAY 2023 AT 0:22

A LETTER


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16 APR 2023 AT 9:45

प्रेम जवाब था,
और तुम सवालिया,
नहीं रख पायी मैं,
एक-तरफ़ा कोशिश,
संयमता,
साथ छोड़ गयी,
नहीं रख पायी जीवित,
और बची रह गयी,
अहमता,
उम्र भर तलाश की,
शांत मगर आक्रोशित,
गहन,
और तीव्र,
भूल बैठी,
श्रृंगार,
सामने था,
आयने सा इक झूठ,
टूटा भ्रम,
और बचा,
अचिन्त्य एहसास,
सच कहूं तो,
वही हो तुम।

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