मैं उससे फंसना चाहती थी, मैं उसमें फंसना चाहती थी, उसकी घड़ी और हाथों की उंगलियों सी, उसके बालों तक, कुछ भी होने को तैयार थी, मैं तैयार थी, उसकी मुस्कुराहट उसका इत्र होने को भी।
जो अंजान रास्ते आप संग बहुत अपने लगते थे, आज वहीं, जान - पहचान भी बहोत चुभने लगी है, नहीं जानती क्या करूं क्या नहीं, बस आपकी बेटी अब बहोत सीमित सी हो गई है। सुकून की तलाश अब नहीं करती है वो, अभी न जाओ छोड़ कर गाना भी अब उसको आंसुओं की ओर नहीं ले जाता है, मगर न जाने क्यूं चिट्ठी न कोई संदेश पर आज भी उसका ज़ोर नहीं चलता है, भले जताना छोड़ दिया हो उसने, मगर तारों से न जाने क्यूं इतनी करीब सी हो गई है, आपकी बेटी न जाने क्यूं इतनी अजीब सी हो गई है।
प्रेम जवाब था, और तुम सवालिया, नहीं रख पायी मैं, एक-तरफ़ा कोशिश, संयमता, साथ छोड़ गयी, नहीं रख पायी जीवित, और बची रह गयी, अहमता, उम्र भर तलाश की, शांत मगर आक्रोशित, गहन, और तीव्र, भूल बैठी, श्रृंगार, सामने था, आयने सा इक झूठ, टूटा भ्रम, और बचा, अचिन्त्य एहसास, सच कहूं तो, वही हो तुम।