उठो तुम्हें पुकारते हैं ज़िंदगी के रास्ते,
उठो अभी हैं मुंतज़िर हर ख़ुशी के रास्ते
होंठ की लकीर को मोड़ दो हँसी करो,
कदम रखो की ज़र्द है सब्ज़ ये ज़मीं करो
बाँध लो अतीत को गिरह में अपनी ज़ुल्फ़ की
बक़्श दो नज़र जहाँ को, खिड़कियाँ हैं ख़ुल्द की
ग़म के जाल तोड़ दो , ग़मज़दा नहीं हो तुम ,
ख़फ़ा कोई हो तो हो, सुनो ख़ुदा नहीं हो तुम,
कश्मकश बने जो शक़्स ख़फ़ा करो दफ़ा करो
ख़ुद पे तुम रहम करो, ख़ुद से तुम वफ़ा करो
उठो भला रुके हैं कब किसी नदी के रास्ते
उठो अभी हैं मुंतज़िर हर ख़ुशी के रास्ते ।
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