Shubham Kumar Verma   (skv)
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Learner of presence...
Joined 26 December 2019


Learner of presence...
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23 JUN 2022 AT 20:52

Sapno ki chadar oddh ke so jane se achha hai ki lakshya par jag kar kaam kiya jaye.

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12 OCT 2021 AT 8:46

उसका यूं रूठ कर जाना, हमें लाज़मी नहीं,
अब मेरा क्या हक़ उनपर....क्या ये मेरी खा़मी नहीं।

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24 AUG 2021 AT 20:31

धधकती ज्वालाओं की तरंग है तू ,
खुद का खुदरंग है तू ,
ये चकाचौंध सब मिथ्या है ,
तेरी मंजिल की हत्या है ,
मत बहक मत बिगड़ ,
अपनी राह को पकड़ ,
मस्तियों के झुंड छोड़ ,
तप की होड़ को पकड़,
जिद कर तो जिद पे अड़,
तू अपने हुनर का कर निचोड़,
चल चट्टानों को अपने भुजबल से फोड़...

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19 AUG 2021 AT 21:59

जीने का मजा तब तक नहीं आता,
जब तक ये पता न हो कि मैं इसके बिना जी नहीं सकता।

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15 AUG 2021 AT 21:25

हर रोज मैं तुमको सुनना चाहता हूं,
कितनी अनकही हैं जो मैं तुमसे कहना चाहता हूं,
मैं तुमको तुम्हारी खूबसूरती दिखाना चाहता हूं,
मैं तुमको तुम्हारी सूरत से नहीं, तुम्हारी सीरत(रूह) से मिलावाना चाहता हूं,
मैं बस तुमको तुम से मिलवाना चाहता हूं,
किसी रोज़ सब कुछ भूल कर इत्मीनान से तेरे पास बैठकर सिर्फ़ और सिर्फ़ बस तुम्हें सुनना चाहता हूं।

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3 AUG 2021 AT 16:41

तुम इतना भी ना खुद को संवारा करो,
यूं बेवजह ना मुझको आवारा करो।

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27 JUL 2021 AT 21:15

कुछ खोए बिना कुछ भी पाया नहीं जा सकता,
खुद को हारे बिना किसी को भी जीता नहीं जा सकता।

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9 JUL 2021 AT 19:30

बेशक़ मिले रुसवाईयां पर साथ तेरा चाहिए,
हर कदम पर मुझको अब हाथ तेरा चाहिए...

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3 JUN 2021 AT 19:57

मित्रता की क्या कोई परिभाषा है,
यह तो बिन बोले की भाषा है।

जीवन धन धाम मरण क्या है,
मित्रता से बड़ा त्राण क्या है।

मित्रता कृष्ण - सुदामा की जग जानें,
मित्रता कर्ण - सुयोधन की मन प्रिय मानें।

एक सूर्य वरण का वेशी है,
दूजा सुगम विजय आशीषी है।

जब तक हम दोनों की सांस चलें,
गिरिधर! मित्रता हम दोनों की साथ चलें, निष्पाप चलें।

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26 MAY 2021 AT 12:45

गगन में ठहराव की छीटें,
तेरी कल्पना ही व्यर्थ में बीते,
क्या कोई ठहराव है मंजिल,
करता जा सफ़र,अंजलि भर अंजिल...

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