धधकती ज्वालाओं की तरंग है तू , खुद का खुदरंग है तू , ये चकाचौंध सब मिथ्या है , तेरी मंजिल की हत्या है , मत बहक मत बिगड़ , अपनी राह को पकड़ , मस्तियों के झुंड छोड़ , तप की होड़ को पकड़, जिद कर तो जिद पे अड़, तू अपने हुनर का कर निचोड़, चल चट्टानों को अपने भुजबल से फोड़...
हर रोज मैं तुमको सुनना चाहता हूं, कितनी अनकही हैं जो मैं तुमसे कहना चाहता हूं, मैं तुमको तुम्हारी खूबसूरती दिखाना चाहता हूं, मैं तुमको तुम्हारी सूरत से नहीं, तुम्हारी सीरत(रूह) से मिलावाना चाहता हूं, मैं बस तुमको तुम से मिलवाना चाहता हूं, किसी रोज़ सब कुछ भूल कर इत्मीनान से तेरे पास बैठकर सिर्फ़ और सिर्फ़ बस तुम्हें सुनना चाहता हूं।