Shubham Bharti   (Shubham Bharti)
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Joined 21 June 2017


Joined 21 June 2017
1 MAY AT 23:15

ख़ामोश हम अभी, छटपटाये थे बहुत,
आघात ने आहत का अर्थ बतला दिया।

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30 APR AT 8:02

दुई मूरख सब देख रहे,
एक मूरख है खुश ।
ना धन है, परिवार ना पैसा,
ना ही कोई दुःख ।

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27 APR AT 22:41

Compassion that born through feeling of pity is nectar to ego.

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27 APR AT 22:22

ज़िंदगी कुछ ऐसी है जनाब,

तुम मरते रहो कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं
अब हम मर रहे तो निर्दय हो गई सारी दुनिया ।

बेहतर है फ़र्क़ ना ही पड़े
झूठा तो नहीं वो फ़र्क़ पड़ने सा।

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13 SEP 2023 AT 1:01

इतनी चकाचौंध है इधर, किनारों में हूं चल रहा,
निस्तब्धता और भीड़ में, पल-पल हूँ बदल रहा।

शांति की चाह है, भूख ना जो तृप्त हो।
समाज हो या ना रहे, भूख अब ये तृप्त हो।

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3 AUG 2023 AT 23:08

तुम आफ़ताब बनी कायेनात की,
अंधेरे का वो तारा ही सुंदर था।
तुम बादल बनी धूप - छाव की
मेरा आसमान सुंदर यूँ ही था।

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20 JUL 2023 AT 21:08

बिना व्यावहारिक, अनुभवजनित ज्ञान के; शास्त्र का ज्ञान एक भयंकर हथियार है।

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17 JUL 2023 AT 23:20

The ultimate sacrifice is the sacrifice of life itself.

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6 JUL 2023 AT 22:43

Astrology makes You dumb.
Spirituality makes You docile.
Truth makes you aware about both of them.

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11 MAY 2023 AT 23:54

अंधेरा नहीं, धूप ही पसंद है मुझे
पर, लगता है सूरज का इंतक़ाम हो गया।

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