या ख़ुदा कुछ तो मेरी किस्मत में विशाल यार होता।
हम होते मुन्तज़िर उसके,वो मेरा तलबगार होता।।
जितनी भी होती हयात कसम से,उस मोहब्बत में
बाखुदा ये दिल ओ जान उसपर ही निसार होता!
राब्ते खत्म हो जाते, न रह जाती मोहब्बत उसके दिल में,
इस टूटे दिल में भी मगर वही एक सुमार होता।।
हम नमाज़-ए-उल्फ़त अदा करते, और
सज़दा रेज़ होते जिधर कू-ए-यार होता।
आता है ख़्याल मेरे ज़हन में, 'शबाना'
गर मर जाते कदमों में तो मेरा भी इक मज़ार होता।
Shabana khatoon
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