Shreya Giri ❄️   (Shreya ✍)
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Joined 1 December 2020


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18 JAN 2022 AT 18:01

ख्वाबों का दरिया
या वहम का समंदर है ये कोई
दिल कहता है यकीं कर
निगाहें सवाल करती हैं - किस पर ?

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29 DEC 2021 AT 18:23

शिकायत किसी से किसको नहीं है
शोहरत की चाहत यहाँ किसको नहीं है
ये जान कर भी मौत आनी ही है इक दिन
जीने की चाहत यहाँ किसको नहीं है ।

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17 NOV 2021 AT 21:58

कुछ पर ज़माना साथ होगा
कुछ रास्तों पर तुम्हें अकेले चलना होगा
यही हकीकत है , तजुर्बा भी यही बयां करता है
कुछ तुम्हें लोग सिखाएंगे
कुछ बातों पर तुम्हें खुद अमल करना होगा ।

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11 NOV 2021 AT 20:18

बहुत कुछ सुनना है
बहुत कुछ कहना बाकी है
इस अधूरी कहानी का
आज भी इक किस्सा बाकी है
तुम्हारी मेरी मुलाकात भले ही इत्तेफ़ाकी हो मगर
अभी तो जिंदगी भर का ये साथ बाकी है ।

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8 NOV 2021 AT 8:37

मुक़म्मल मौत होती तो
मैं शायद मर चुका होता
अधूरी साँस बाकी थी
इसी कश्मकश में जिंदा हूँ ।

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7 NOV 2021 AT 23:18

कोई पूछता है हाल उनसे अगर
मुस्कुराकर सब खैरियत बताते हैं
अंदर से कितने भी खाली हों मगर
बाहर से अक्सर खुशमिजाजी फ़रमाते हैं ।

तल्ख था मिज़ाज उनका
हम समझ सकते थे
उस चेहरे के पीछे छिपी उदासी को
हम खुली किताब की तरह पढ़ सकते थे
उन्होंने तो कोशिश ही बंद करदी
अगर लड़ते खुद से खुद के लिए
तो शायद इक दिन जीत भी सकते थे ।

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25 OCT 2021 AT 22:38

तुम काफ़िर हो
मैं खुली किताब बन जाऊं
तुम परछाई मेरी
मैं तव-ए-महताब बन जाऊं
मुकद्दर भी मिले कुछ इस कदर
तुम मैं और मैं तुम बन जाऊं ।

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25 OCT 2021 AT 22:31

तुम काफ़िर हो
मैं खुली किताब बन जाऊं
तुम परछाई मेरी
मैं तव-ए-महताब बन जाऊं
मुकद्दर भी मिले कुछ इस कदर
तुम मैं और मैं तुम बन जाऊं ।

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15 OCT 2021 AT 22:57

मुसाफिर कहता हूँ खुद को
पर सफर की तनहाई से डरता हूँ
समंदर किनारे बैठ कर
गहराई से डरता हूँ
पाकर तुझे अब मैं
खोने से डरता हूँ
जमाने को देखा है इतना करीब से
इन मुख़्तलिफ़ चेहरों की सच्चाई से डरता हूँ
चलता हूँ यूँ ही कच्ची डगर पर मगर
गिर कर भी मैं खुद ही संभलता हूँ
जीने की हसरत तो दिल में कहीं बैठी है
मैं तो दुनिया-ए-तसव्वुर में आज भी
उसी काफ़िर पर मरता हूँ ।

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26 SEP 2021 AT 14:03

कि निकले थे हम घर से किसी अपने की तलाश में
कुछ दूर चल कर एहसास हुआ 'खुद को भी खो दिया हमने'

तुम्हें ढूंढ़ते - ढूंढ़ते खुद को भुलाया है
कुछ इस तरह से मैंने तुम्हें पाया है।


पाने की चाहत तो गैरों को होती है
अपने तो हमेशा ही दिल में रहते हैं।

जो दिल से उतर गया उसे क्या अपना कहें
मेरा होता तो जाने की कोशिश ही न करता ।


अपने यूँ दिल से उतरते नहीं
जाते तो वो हैं जो कभी साथ होते ही नहीं ।

खैर साथ तो सभी का छूटना है एक दिन
मुझे तो खुदके सिवा कोई अपना मिला ही नहीं ।

साथ छूटे नहीं छूटता
लोग बिछड़े नहीं बिछड़ते
हम तो वो शख्शियत हैं
बिना दिल लगाए किसी के साथ नहीं चलते ।

यूँ हर किसी को दिल गर दिया करोगे
हर दफा हर किसी से दर्द यूहीं लिया करोगे ।

उस दर्द में भी इक अलग ही मज़ा है
जो चढ़ता नहीं शराब से ये ऐसा नशा है
पाँव रखोगे जमीं पर तो कांटे भी चुभेगें
खैर मानो तो ये जिंदगी भी किसी के लिए सजा है ।

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