बैठे बैठे तुम्हारे ख्यालों में खो जाने की आदत सी है मुझे,
कि मेरे सारे काम मुझे झूठे लगने लगते हैं।
तुम्हारी आदत सी हो चुकी है मुझे
कि अब तुम साथ नहीं हो तो लगता है अधूरी हूँ मै।
वापस लौटने की उम्मीद हर कोई करता है,
मगर तुम्हे हमेशा के लिए पाने की चाहत है मुझे।
मेरी ख़ुशी हो तुम, कि तुम्हारे साथ बिताये हर लम्हे में सुकून था मुझे,
तुमसे लिपटे हुए अपनी शाम बिताना, रात के सुकून को तुम्हारे साथ बांटना, तुम्हारे हाथों में अपने हाथों को देखना,
अब बस ये एक सपना सा लगता है मुझे।
रोती हूँ रोज़ मैं इस ख्याल में कि तुम आओगे मेरा साथ देने,
मगर, तुम्हारे वो आखिरी उम्मीद भरे शब्दों ने तालाब के बीच में बिना नाव के छोड़ दिया है मुझे।
-