सुनो,,
एक बात पूछनी थी तुमसे
क्या तुम जवाब दे पाओगी...
गर जो रूठ जाऊं मैं तुमसे किसी रोज़
तो क्या तुम मुझे मना पाओगी।।
यूं तो मैं बड़ा शांत सा हूं
पर क्या तुम मेरे अंदर के शोर को सुन पाओगी...
हो जाऊं अगर मैं कभी ख़ामोश तो
क्या मेरी अनकही बातों को समझ पाओगी।।
प्यार बेशुमार है मुझमें तेरे लिए
पर क्या मेरे बीन दिखाए भी तुम जता पाओगी...
बिखरा होगा जब मेरे अंदर सब कुछ तब
क्या अपने आंचल में मेरे मन को समेट पाओगी।।
कठोर सा दिखने लगूंगा जब तुम्हें मैं तो
क्या मेरे अंदर के मासूम बच्चे को देख पाओगी...
भूल जाऊं अगर मैं खुश रहना तो
क्या फिरसे मेरी मुस्कान लौटा पाओगी।।
जब छोर जाएंगे सब मुझे अकेला और बेबस
क्या उन लम्हों में तुम मेरा साथ निभा पाओगी...
एक बात पूछनी थी तुमसे
क्या तुम जवाब दे पाओगी।।।
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