Shimpy Mehra  
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शिम्पी मैहरा
Joined 19 June 2018


शिम्पी मैहरा
Joined 19 June 2018
19 APR 2022 AT 22:13

मुझे बिगाड़ दो।
मुझे संवार दो।
जिंदा रखो या
मुझे मार दो।

मैं जो भी हूँ,
जैसा भी हूँ,
तुम सा ही हूँ।
मैं आदमी हूँ।

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27 FEB 2022 AT 22:31

काश!
मैदान-ए-जंग
में बिखरे गर्म ख़ून
के कतरों से
लिखी जाती
प्रेम कविताएं...

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27 JAN 2022 AT 20:05

बत्तियां बुझाओ तो अंधेरे का डर जलाओ तो शिकायत।
ये कैसा सवाल है कि यहां लोगों के दिल नही जलते।

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18 JAN 2022 AT 17:24

महबूब सामने है और मैं उसके ख्याल में हूँ।
ख़ुदा जाने मैं इश्क में हूँ या किस हाल में हूँ।

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5 JAN 2022 AT 16:13

भूले बिसरे
दबे हुए
बीजों को
जिंदा कर देती हैं
ये बारिशें।

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10 NOV 2021 AT 13:34

क्या जरूरी है
ज़िन्दगी को ?
तुम...
..
.
एक कप चाय
और बस।

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4 NOV 2021 AT 7:48

बुझ चुकी दिलों में वो आग जलाओ।
किसी अंधेरे रास्ते पे चराग जलाओ।

अब हर शहर में बिजली है लड़ियाँ हैं।
ढूंढो कोई बस्ती उसमें चराग जलाओ।

उन का घर रोशन है जिनका घर है।
हो कोई बेघर उसके चराग जलाओ।

माँ-बाप से अलग हो कर रह रहे हो।
फायदा नही जितने चराग जलाओ।

किसी प्यासे को पानी पिलाओ फिर।
जरूरी नही की कोई चराग जलाओ।

जहाँ की सब नफ़रतें खाख़ हो जएँगी।
बस मुहब्बत का एक चराग जलाओ।

रोशनी के लिए खुद को सूरज बनाओ।
यूँ नही की बस जा के चराग़ जलाओ।

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24 OCT 2021 AT 20:26

तमाम अहसासों के
सूख जाने पर
जब किसी
ठूंठ सा
खड़ा
मिलूँ मैं
तुम्हें किसी
गहरे बियाबान
के ठीक बीचों बीच
बस एक क्षणिक
स्पर्श भर देना
ताकि फूट
पड़ूँ
फिर से
एक कोंपल
ठीक उसी हिस्से
से जहाँ छुआ हो तुमने।

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6 OCT 2021 AT 19:49

याद है ना
तुम को
वो
आखिरी चाय।
आओ।
कि वो इस
गम से निकल पाए।
कोई चाय
नही चाहती
आखिरी चाय
कही जाना।

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26 SEP 2021 AT 20:59

दिल-ओ-दिमाग से
अब उतरने लगे हो
तुम।
आँख बंद करने पर
अब दिखते नही हो
तुम।

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