शिल्पी सक्सेना   (©मधुशिल्पी)
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Joined 3 May 2019


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मेरी ज़िन्दगी की लता तुम बनना
सुख दुख के फल फूल जो चाहो वो बनना

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मेरी इस कहानी में
दया प्रेम करुणा से भरपूर
बस अहंकार न हो मेरी इस ज़िन्दगानी मे

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तसव्वुर में मेरे सिर्फ तुम ही तुम थे
महफ़िल से लेकर एकांत तक बस तुम ही तुम थे

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कहते नही किसी से हम

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दिन का करार हो तुम
ईश्वर से मिला मुझको
सर्वश्रेष्ठ उपहार हो तुम

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अब तो अपनी परछाई भी साथ नही निभाती है
ज़माने के इस दस्तूर को वो भी बखूबी निभाती है

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प्रेम का पथ है
उदासी और अंधकार
भरा

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मां की दुआओं सा प्रतीत होता है
ममत्व भरे स्पर्श से एहसास दिलाता है
फेरकर हाथ सिर पर ज्यों मनुहार मां करती है
उठ जा मेरे लाल काम पर नही जाना
लगता ऐसा कहती है
चढ़ता है ज्यों ज्यों दिन तपिश एहसास दिलाती है
सख्त पहरा पिता का संग हो
ये एहसास दिलाती है
सुबह का सूरज मां बाप के आशीर्वाद सा
साथ सदा ही रहता है
कर्तव्य निष्ठा के मार्ग पर बढ़ने की याद दिलाता है

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दुनिया की नज़रों से छुपा ले मुझे
अपने ही भीतर छुपा ले मुझे

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मतलबी बेदर्द ज़माना लगता हमें बकवास
ऐसे में क्यों लगाएं किसी इंसान से हम रहमत की आस

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