एक शाम जब मेरी झिझक भरी हाथों को तुमने खींच अपने तन पे रख दिया, तो उस बाइक राइड ने जैसे सिहरन से भर दिया था मुझे। वो स्पर्श इतना कोमल अपितु इतना मज़बूत था की जैसे मैं पिघल भी रही हूँ और पत्थर की मूर्ति सी सवर भी। प्रेम के आभास मेसे ये आभास सबसे भिन्न और सबसे ज़रूरी होते है। तुम कमज़ोर और शक्तिशाली एकसाथ महसूस कर सको, तो वहीं सही मायनों में प्रेम है।
प्यार यू तो डाट लगाकर भी जता लेते थे वो, लेकिन जब-जब प्यार में पड़ सीने से लगाते तो हर बार इश्क़ उस पायदान पे चढ़ जाता जहाँ दुनियाँ का हर दुख अपना अस्तित्व खो देता था और सुख की परिभाषा बस वो पल होता था। बस वो पल, वो प्रेमी, उनकी बाहें और मैं।
ये जो समानांतर रेखाएं होती है ना, बड़ी अजीब सी होती है। साथ चलती है लेकिन कभी मिलती नहीं। तुम मेरी वही समानांतर रेखा हो। साथ चलते हो, मिलने के बहाने बनाते हो, सपने दिखाते हो....