Sheefali Chaudhary   (चंचल)
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Joined 23 November 2017


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Joined 23 November 2017
27 JUN 2020 AT 14:03

मुझे अपने वजूद की।
वजूद मेरा जिसमे सिर्फ़
मैं हूँ।
वजूद जो आज़ाद हो
तुम्हारे हर अच्छे-बुरे
ख्यालों से।
तलाश है मुझे उस लड़की
की, सामने तुम हो और
उसे पड़े न फ़र्क़ तुम्हारी
मौजूदगी की।

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27 JUN 2020 AT 1:58

कभी कभी जीवन मे ऐसा दौर आता है जब आप अपने सबसे मजबूत वाले हिस्से से खीज जाते है।आखिर क्यों, इतनी मुश्किलातो के बाद भी थक कर हार नहीं मान लेते है।
आज कल कई दफ़ा ऐसा लगता है अपनी सबसे अजीज़ दोस्त को फ़ोन करू और कह दूं कि" यार अब नही हो पा रहा है, थक गई हूं मैं अब। मुझसे अब कुछ भी नहीं संभाला जा रहा है।"
मगर ठीक उसी समय ये स्ट्रांग सेल्फ बोल उठता है नही अभी नही, अभी तो मैं हूँ न।
पिछले कुछ दिनों से जीवन मे पहले से कई गुना ज्यादा भसड़ मची पड़ी है। इंजेक्शन और दवाई जीवन के एक जरुरी हिस्से बनने जा रहे है। डॉक्टर के पास इलाज करवाने जाओ किसी चीज़ का और वो सवाल पूछ बैठते हैं," ये तुमको अंदर ही अंदर क्या खा रहा है? तुम कितनी भी दवा खा लो ये ठीक नहीं होगा"। मैं एक नज़र बस डॉक्टर को देखती रहती, दवाई लेती और आ जाती।
हमको कैंसर हो, सर्दी, खाँसी, बुख़ार, हो तो डॉक्टर के पास चले जायें। पर ये जो बीमारी हमें अंदर से मार डाल रही इसके लिए कौन सी इंजेक्शन लगवाए, इसके लिए किसके पास जाये? कैंसर का इलाज फिर भी मुमकिन है, इसका क्या करे?
-चंचल

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27 JUN 2020 AT 1:16

किसी से इतनी मोहब्बत नहीं कर लेनी चाहिए कि
रात में सोने के लिए स्लीपिंग पिल्स की जरूरत पड़ने लगे।

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26 JUN 2020 AT 19:23

I did not tell you that I did something worse than you did; I trusted you.

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26 JUN 2020 AT 1:03

जब पौधा सुख रहा होता है तब तुम ध्यान नहीं देते। जब चाहिए होता उसे पानी, खाद और हल्की धूप तो यूं ही छोड़ देते।
और जब पौधा सुख के, मर चुका है, तब तुम उसमें पानी डाल रहे और उम्मीद करते जीवित हो उठेगा?
रिश्ते और प्रेम भी इन पौधों जैसे होते है !!!
देर हो गयी है अब, बहुत।

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26 JUN 2020 AT 0:43

अब क्यों? अब नहीं उठाती फोन तो क्यों मचल जाते हो!
अब जब मैं छोड़ दी सब वक़्त पे, जब सब जानते हुए मैंने पूछे नही तुमसे कोई सवाल तो अब क्यों तुमको फ़र्क़ पड़ रहा मेरी चुप्पी से। रहने दो न चुप मुझे।
खो गयी है वो जो सिर्फ तुम्हारी हुआ करती थी।
खो गयी है वो जो तुमसे बिना रुके बक बक किया करती थी।
खो गयी है वो जो तुमसे ही गले लग तुम्हारी शिकायत किया करती थी।
तुम ढूंढ उसे रहे अब जिसे तुम खुद मार डाला।
मत करो अब उससे इतना प्यार। मत करो... :')

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24 JUN 2020 AT 19:16

तुम्हें देखना। जैसे शाम के धुँधलाते सूरज की आख़िरी लालिमा को देखना। ये जानते हुए कि धुँधला जाना है सब कुछ। कि गहरा सियाह बसते जा रहा है हमारे दिल में।
अब जब कि एक पूरा लम्बा साल हमारे बीच खड़ा है कुछ यूँ कि उम्र भर का फ़ासला लगता है मैं उसी शाम में लौटना चाहती हूँ...मगर जानां, उस शाम की गर्माहट महसूस नहीं होती।
जब तक पास होते हो तुम, सूरज को अपनी रोशनी से लाल करते हुए, सब सच लगता है दुनिया में। मुहब्बत, दोस्ती, चाय
तुम दूर जाते ही जादू हो जाते हो। जिसे ना छुआ, ना देखा सा सकता है...बस महसूस होता है कि तुम हो, कि तुम थे, कि कुछ तो था हमारे दरमियां !! :')

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24 JUN 2020 AT 2:38

अकेली पड़ गयी,जैसे बचपन का कोई बुना स्वेटर, जो जाने कितनी सर्दियों से नहीं निकला,मगर रखा हुआ है। जैसे सर्दी ख़त्म होते ही रजाई को गोली डालकर दीवान में रख दिया हो। और अगली सर्दी मानो दशकों बाद भी ना आए। पर सुनो, धूप नहीं नज़र आती। ठण्ड गयी ,पर सब कुछ सीला सीला है। बिस्तर की सिलवट पर एक मायूस सी नमी , हर वक्त। कड़क ,खनखनाती धूप की तलब है , क़ि सुखा सकूं बिस्तर की हर सिलवट ,तकिये का हर आंसू , बक्से में रखी शॉल , सीली सी हर याद। सब कुछ ठहर गया है सदियों से ,सदियों के लिए । लगता है जैसे वक्त की किसी एक टिक टिक में हमेशा के लिए कैद हो गयी । बाहर निकालो , क़ि यहाँ दीवारें रिस रही हैं , कोई मेहमां नहीं आता , रौशनदान पर कोई घरोंदा नहीं बना सालों से । सामने जो एक कदंब का पेड़ है,हर पत्ता जस का तस, कोई बसंत नहीं ,कोई पतझड़ नहीं! धूप आए तो चैन मिले , सुखाऊं सदियों को , नाज़ुक सी डोर पर लटकाकर , क़ि भाप बन जाए हर नमी,हमेशा के लिए ! :')

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23 JUN 2020 AT 21:18

मुझे ज़िन्दगी में दो बातें कभी
बर्दाश्त नहीं थी।
एक हमारी जगहों का
किसी और के साथ बटवारा।
दूसरा झूठ...
पहला तो मैं तुम्हारी नासमझी
समझ, तुमको डिफेंड कर लूं।
पर झूठ ? इसका क्या करूँ मैं।
तुम तो खुशियाँ,मेरी छोटी छोटी
खुशियाँ जानते थे, और मेरी आदतें।
सब कुछ...
फिर कैसे बोल लिए झूठ ?

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23 JUN 2020 AT 0:46

It was the first time I took a short, one day trip with friends. I went to Rishikesh with my best friend and four other friends ❤️. We reached Haridwar around 4am, sitting at the bank of Ganga Ji, together we watched sunrise. Spending few hours there, we packed ourselves for Rishikesh. Cold breeze on our faces and music in background;deadly combination. After reaching Rishikesh, we prepared ourselves for 'River Rafting'. I was so excited because it was first wish from my "to-do list before I turn 30" was going to be true.River rafting was so gorgeous and so much fun because everyone in our raft got so excited with every little rapid.Have you ever been rafting? It was my first time. Those jumps from raft and cliff under the water was best experience. Will never forgot that experience,this was a little different,a little warmer, a different scenery, can't wait to go again. We went for trek and every small places in Rishikesh. While returning at night we stayed at the bank of the river Ganga Ji. Playing antaksari and our feet were emerged in water ❤️ It's beautiful how a few places can make you feel a little closer to your being !!
-चंचल ❤️🌼

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