कुछ बात ऐसी हुई, कि उनके पास नहीं हूँ,
वो मिलने तो आते रहते हैं, पर साथ नहीं हूँ,
सुबह आँख खुलते ही, हम बात कर लेते हैं,
दिन भर क्या करना है, सब जान भी लेते हैं,
हर रोज़ वक़्त के हिसाब से सब होता रहता है,
फ़र्क़ बस इतना है, जब वो घर वापस आते हैं,
मैं उनकी वो सुक़ून भरी, सुनहरी सांझ नहीं हूँ!
वो आते हैं...मिलते हैं...बात भी करते हैं ख़ूब,
अपनी मौजूदगी में, मज़ाक भी करते हैं ख़ूब,
पर जब भी वो बोलते हैं, घर कब चलोगी...?
मैं उदासी से...., पलकें झुका लेती हूँ उस पल,
क्या कहूँ? कुछ बेबस हूँ,उनका जवाब नहीं हूँ!
वो मेरे हाथों पर अपना लम्स देते हुए कहते हैं,
तुम बस अपना ख़्याल रखो, सब ठीक होगा..!
कुछ दिन की तकलीफें बेशक हो रहीं है ज़रूर,
पर नतीजा, दोनों की ज़िन्दगी का तोहफा होगा!
हाँ,बेशक मैं सुबह से सांझ तक बिस्तर पर ही हूँ,
कौन कहता है,उनकी ख्वाहिशों पर क़ुर्बान नहीं हूँ!
वो इस क़दर उम्मीदें भर देते हैं हर पल मेरे अंदर,
मुझे सोचना भी नहीं कुछ, नहीं..मैं बीमार नहीं हूँ!
Shazia malik🙂
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