SHASHI'S Quote निर्झर   (Shashi chandan)
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Joined 18 May 2021


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Joined 18 May 2021

उफ्फ दिल में जगी ये अपनों की प्यास।
संग लगाना, उनसे रहमत की आस।।
हाथ पे हाथ धरकर,दिन रैन जपना काश..
सिर्फ़ देखना है तुझे तेरे वजूद की लाश।।
✍️
सुनो बांध रब संग,अपने विश्वास की डोर ।
और हौसलों से रच, इतिहास की पोर।।
लिख दे, निर्झर एहसास कोरे पन्नों पे.…
मिटेगी ज़रूर, तेरे परिहास की भोर..।।
✍️
पोंछ दे अश्रु, क़दमों को दे वक्त की रफ़्तार।
हां बहेगी सपने के पंखों से रक्त की धार।।
एक बार नहीं हज़ार बार,जीत संभव तभी,
जब सच्ची होगी, निश्चल भक्त की पुकार।।
© शशि चंदन "निर्झर"

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मीठी सहर और सुहानी सांझ का,
अब यूं तपती दोपहर हो जाना।।
कि सहा नहीं जाता मुझसे "शशि"
तेरा यूं बेगाना सा शहर हो जाना।।
© शशि चंदन "निर्झर"

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देख राहों की मुश्किल रुकना नहीं।
अंधेर नगरी में कभी भटकना नहीं।।
🌻
चूर चूर हो जाएं स्वपन सलोने गर,
धिक्कारने लगे अपने ही कोने गर,
🌻
तू पोंछ लेना, अपने ढलकते अश्क,
बन एकलव्य साधना अपना लक्ष्य।।
🌻
तूफानी हवाएं भी दुलार करेंगी "शशि"
मुश्किल राहें मुस्कुराते हुए जयकार करेंगी।।
©शशि चंदन "निर्झर"

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रूठने पर मनाने वाला,कोई साथी नहीं मिलता।
कि खुद संभल जाओ, संग कोई राही नहीं चलता।

अक्सर ही, दूर के ढोल सुहाने होते हैं।
करीब आए जो,नसीब मयखाने होते हैं।।।

ताली बजाकर बजाकर पीने को खार देते हैं।
दिल के टुकड़े टुकड़े कर रुह को मार देते हैं।।

कि शशि इन गीले गिलाफ को राज़ ही रहने दो।
कृष्ण तेरे सारथी हैं, गीता को हमराज रहने दो।।
©शशि चंदन "निर्झर"

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उफानों में ऊंचाई से गिरती
वक्त की थपेड़ों से लड़ती
नगमें अश्कों से लिखती
पर देखो ना समंदर की लहरें...
नहीं करती कभी आह.....!!

अपने साहिल से,मिलन नहीं
धरा–अंबर से, जलन नहीं,
जीवन का सार,सरल नहीं
पर देखो ना समंदर की लहरें
नहीं करती कभी आह....!!

मूर्छा आ ही जाती होगी जब,
चट्टानों से सर फोड़ी होंगी तब,
रुधिर की बूंदें ओढ़ी होगी कब,
पर देखो ना समंदर की लहरें,
नहीं करती कभी आह...!!
© शशि चंदन "निर्झर"

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श श श..... चुप.. चुप....शोर नहीं करना।।
हार कर,ऊंगली किसी की ओर नहीं करना।।

कुंजी सफलता की,भला यूं ही मिलती है क्या?
लकीरें अपने आप, यूं ही बनती हैं क्या???

तज आलस्य,चूमता है जब खार जमीं को..
दिन में चांद, रात को आँखें ताकती रवि को...

ज्यों नन्हीं चींटी चढ़ती पहाड़, गिरती सौ बार..
देखो हौसला भरती,मनाती ना फिर कभी हार..

कि दूर नहीं मंज़िल,बस मुलाकात अभी बाकी है,
घोर अंधरों में बस,खुद का साथ अभी बाकी है।।

गहरी सांस लेकर,आवाहन करो अंतर्मन का "शशि"
संघर्ष की शिला पे सफलता ही है मूल जीवन का।।
© शशि चंदन "निर्झर"

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छूटते साथ देखकर अनदेखा न कीजिए।
मुंह फेर, वैमनस्य की रेखा न खींचिए।।।
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मनमुटाव का लेखा जोखा खत्म कीजिए,
तू तू मैं मैं का जाल तोड़, हम कीजिए।।
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गलती होती नहीं किससे,सोचिए ज़रा..
स्वयं को जांच,माफ़ीनामा लिखिए ज़रा।।
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मीठे बोल लबों की शोभा बढ़ाते हैं प्यारे,
खट्टे कड़वे बोल, तांडव कराते हैं प्यारे।।
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इंद्रधनुषी जीवन की बगिया को रहने दीजिए,
कि ईद संग फगिया को गले मिलने दीजिए।।
© शशि चंदन "निर्झर"

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निज स्वार्थ का जब तलक दहन होता नहीं।
आसान रुह से रूह का मिलन होता नहीं।।
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ढेर नोटों के महज तिजोरियां सजाते...
आसान प्रेम की धारा का वहन होता नहीं।।
✍️
टकराते हैं सफर ए ज़िंदगी में मुसाफ़िर कई
आसान लिखना संग इक पहर होता नहीं।।
✍️
उफ्फ हाल कहें,लाशें ढूँढती रहती कांधे ..
गांव सा गले लगाकर, शहर रोता नहीं।।
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किताबें दीमक के हवाले,जज़्बातों की बोली शशि।
कि आसान शब्दों विचारों का मनन होता नहीं।।
© शशि चंदन "निर्झर"

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गर्भगृह के अंधकार ने डोर को जकड़ लिया।
मां ने कसक कर कच्ची पोर को पकड़ लिया।
कि असीम असंख्य वेदनाओं की मार पे....
स्वाति की बूंद से,चोकर को शिखर दिया।।

कि कोरे कागज़ पे, खुशियों के मोती लिखती ।
लाड–दुलार संग संस्कारों से झोली भरती।।
गम की हर आहट पे,वो कालिका बनती.....
आशीष तले, धूं धूंकर फिर होलिका जलती।।

करुणामयी ममतामयी मां, हृदय सदा विशाल रखती।
माटी से गढ़ राणा शिवाजी, स्वर्णिम इतिहास रचती।।
है सौभाग्य शशि तेरे, जो मां सा प्यारा रिश्ता पाया,
शुक्रिया ए खुदा जो तूने, मां सा फरिश्ता बनाया।।
© शशि चंदन "निर्झर"

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"चलो..इस चाँदनी रात को अब अँधेरी ही रहने देते हैं!
बहुत से ख़्वाब-ओ-ख़याल मैंने ज़ेहन में झूलते देखे हैं!!"
© शशि चंदन"निर्झर"

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