ख्वाइश है माह ए पाक में ,,
खोया रहूं मैं आप में ,,
कुछ बात हो बे-मतलबी ,,
कुछ काम हो बेकार सा ,,
बस इश्क हो आराम से ,,
फ़ुरसत मीली है काम से ,,
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें ,,
दौरें इश्कियां चलता रहे ,,
एक चांदनी सी रात हो ,,
मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,,
अंजाम की परवाह कहां ,,
अब शह हो चाहे मात हो ,,
फिर मैं बजाऊं बांसुरी ,,
तुम गुनगुनाती रहो ग़ज़ल ,,
बस रात सब सुनती रहे ,,
इस फूल को चुनती रहे ,,
मैं चाहता हूं चांदनी ,,
यूं ही चकोर से मिलती रहे ,,
और फिर मुझे समझाए तु ,,
अब दिल्लगी को छोड़ दें ,,
सुन जींदगी पे काम कर ,,
अपना भी थोड़ा नाम कर ,,
फीर मैं तुम को चूम लू ,,
मन के गगग में घूम लू ,,
लिख दूं तुम पर शायरी ,,
अल्लाह मेरा यार भी ,,
तेरी तरह ही कमाल है ,,
मालिक तेरा शुक्रिया ,,
इसे पा के "अश्क "निहाल है ।
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