हाँ फिर मैंने उसे छोड़ दिया!
जब उसके कहे पछतावे में मुझे सच्चाई नज़र न आइ,
जैसे बेबुनियाद इल्ज़ाम हरपल उसने मुझपर पूरी शिद्दत से लगाया था,
ग़ुस्से का नाम दिया सारे कहे बेरुख़े अल्फ़ाज़ों को कोई चोर जैसे चोरी बेचने आया था।
हाँ फिर मैंने उसे छोड़ दिया!
क्यूंकी दिल न माना उस पल उसकी कही बातों को,
अल्फ़ाज़ों से वो वाक़िफ़ था अपने, जिसे नाराज़गी उसने बताया था,
माफ़ी भी वैसे ही क्यूँ न माँगी फिर जिस तरह मेरी गुस्ताखी का शोर मचाया था।
हाँ फिर मैंने उसे छोड़ दिया!
जब जान कर भी अपनी ग़लतियाँ वो ख़ुद को बेक़सूर बताया था,
महज़ ख़ुद के ग़ुरूर की ख़ातिर रिश्तों को मज़ाक़ बनाया था,
और फिर देखो मुझे ही कहता तुमने यूँही क़सूरवार बनाया था।
हाँ फिर मैंने उसे छोड़ दिया!
जब हर बार चीज़ एक ही दौराह, दिए वचन का मान न रख पाया था,
रिश्ते में दाग़ लगाकर जब इसे एक खेल सा बताया था,
मैं भी कुछ पल मौन रही सोचे कैसे बीता पल साथ सारा एक पल में जो बिखर आया था।
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