अब यहां लोग कम बोलते हैं टीवी बड़ बड़ करतीं है अब चाय की चुस्कियां तो है प्यार की गर्माहट नहीं सन्नाटा पिसरता जा रहा है रिश्ते अजनबी होते जा रहे है अपनेपन से परे अपेक्षाओं का संसार बढ़ता जा रहा है इन कमशकश में उलझते रिश्ते घर के चौखट छोड़ तलाशने निकल पड़े खुद के वजूद को अजनबी भीड़ में कोई अपना सा मिल जाए ।
मैं कौन हूं ? मैं क्या हूं ? ये सवाल मेरे आरंभ से मेरे अंत तक चलेगा साथ, ये सवाल – जटिल है कुटिल है पर है अटल इससे जुड़ा है ये संसार, सोचती हूं सिर्फ मानव के लिए है ये खास या ईश्वर के पास भी है ऐसा कोई सवाल है ।
दबे हुए सपने आज भी कहीं मन के किसी कोने में एक अस्थिरता बनाए रखें हैं, जोड़ पाऊं कुछ धागों को और पंख दे सकूं उन सपनों को, ये मन स्थिरता की आस लगाए हुए है।
leave imprints on the sand listen to the lullaby of nature enjoy the plenty of shades exhale the agony of despair inhale the nomadnss and create your own wellness !!