Shalika Prakash   (शालिका प्रकाश♡)
604 Followers · 30 Following

जिसे चाहा तूने सच में कितना चाहा 🌸
Joined 16 July 2018


जिसे चाहा तूने सच में कितना चाहा 🌸
Joined 16 July 2018
5 MAR AT 0:08

मुझे शिकायत उनसे नहीं
खुद ही की खामियों से गिला है
सारी मोहब्बत लूटा दी एक शख़्स पर
तब भी उन्हें बस दर्द ही मिला है
हाँ, मैं अब भी जकड़ी हूँ उनके ख्यालों से
पर उनकी तो रिहाई का किवाड़ खुला है
समेटती रही मैं आँधियाँ हर बार
इस दौर में अब बिखरने का सिलसिला है
वो हमें समझ ना पाए ये बात और थी
इस दिल को गलत समझा गया
हमें इस बात से मसला है।

-


27 NOV 2023 AT 1:18

ये कैसा इश्क़ हुआ हमें
जो जुदा तुमसे हुए
मगर ख़फ़ा जमाने से

-


10 JAN 2022 AT 21:52

हमारे हिस्से भी कुछ अजीब सितम है
"कोई तो समझेगा" कुछ ऐसा वहम है

जाने हर पल में ये मलाल कैसा है
खुद की शख्सियत पर उठा ये सवाल कैसा है

जितनी भी कोशिश करूँ सबको कम सा लगता है
अपने हिस्से में मुझे गम सा लगता है

लोग तो कह के निकल जाते हैं "सब तुम्हारी जिम्मेदारी है"
पर कैसे कहुँ ये बोझ दिल पर कितना भारी है

थक चुकी हूँ अकेले पर मुझे हारना नहीं है
लेकिन बिखरना लिखा है जो वो संवारना नहीं है

-


26 OCT 2021 AT 12:42

आँखों से अश्क ये
बेवजह क्यूँ बह रहे ?
सब तो हैं खामोश यहाँ
फिर कानों में ये अफसाने कौन कह रहे ?
अपना ही कमरा मुझे
क्यूँ पराया सा लग रहा ?
ये प्यार-व्यार का इजहार अब
क्यूँ दिखावा सा लग रहा ?
अब दिल मेरा
किसी की बातों से क्यूँ नहीं रूठता ?
शायद टूट चुका है अंदर से इतना
कि अब बाहर से नहीं टूटता
उसके होने भर से
सबकुछ पूरा तो नहीं लगा था
फिर उसकी कमी में
सबकुछ अधूरा क्यूँ है ?
उड़ना है जिसे आसमान में
वो जमीं से जुड़ा क्यूँ है ?

-


21 SEP 2021 AT 1:21

गर अब भी तुम्हारी खिड़की तक जाती हो
तो मेरे हिस्से की रौशनी दे जाना
गुम रहती हूँ चाँद में अक्सर
तुम मुझे मेरा सवेरा लौटाना

लिखना छोड़ दिया है मैंने
अब सूकून पाने को
पुराने नज्म ही काफी लगते हैं
जख्म याद दिलाने को

जानती हूँ सबकुछ रूठा है मुझसे
पर मन नहीं करता मनाने को
अब दिल इजाजत नहीं देता
किसी और के राग गुनगुनाने को

गर याद आ जाए कभी तुम्हें
तो मेरे धुन याद दिलाना
मुकम्मल नहीं चाहती अब कुछ
बस मुझे मेरी अधूरी कहानी लौटाना

-


21 MAR 2021 AT 18:20

मौसम की वो आखिरी बारिश,
जिसने बेवजह ही भींगा दिया मुझे,
उस ठहरी हुई जमीं पे,
जहाँ से उस खुले आसमां में बहते बादल
मुझ पर बूँदों के साथ व्यंग भी बरसा रहे थे।
उन व्यंगो की चोट ने तो मुझे,
पहली बार बारिश में भींगने की खुशी का
एहसास भी नहीं होने दिया ।
खामखां ही उन फिसलती बूँदों को
अपनी यादों के बस्ते में समेट रही थी मैं।
अनभिज्ञ थी शायद इस सच से,
कि महज बारिश की कुछ बूँदें ही तो थी वो,
जिन्होंने सूरज निकलते ही सूख जाना सीखा था।
बेवजह ही उन तेज हवाओं की सनसनाहट को
अपने आधे अधूरे सवालों का जवाब समझ रही थी मैं।
अंजान थी शायद इस बात से,
कि महज छाँव की ठंडी हवाएँ ही तो थी वो,
जिन्होंने धूप में रूप बदलना सीखा था।

-


20 FEB 2021 AT 13:19

जिंदगी ...
एक पहेली सी ...
जितना सुलझाऊँ उतना उलझती है...
ना सुलझाऊँ तो मुझे ही उलझा देती है ...

एक आवाज है दिल में,
जो बाहर आना चाहती है...

खामोशियों का एक शांत सा समंदर है...
जो लहरों के साथ बहना चाहता है...

कुछ अजीब सी यादें हैं,
उस बीते हुए कल की...
जो सिर्फ और सिर्फ
एक खुला आसमान चाहती हैं...

एक घुटन है भीतर उन यादों का...
जिनसे मैं बाहर आना चाहती हूँ...

लेकिन सिर्फ खुद का हाथ थामकर।

-


16 DEC 2020 AT 0:19

मेरी डायरी के पन्नों से झाँकती वो जिंदगी...
मानो फिर से मेरा हाथ पकड़ कर खिंचना चाहती हो...
मानो फिर से उस उलझी गुफ्तगू में मुझे उलझाना चाहती हो...

अपने पलटते पन्नों में ये कुछ खास वक्त के सितारे समेटे है,
लेकिन अफसोस, फिर ये अपना आखिरी पन्ना पलटकर
मेरा वक्त पलट देती है ...

फिर सोचती हूँ कि आखिर ऐसी ही तो है जिंदगी...
वक्त इतनी खूबसूरती से पलट जाता है,
ये तो फिर भी कागज के टूकड़े ही हैं...

इस जिंदगी की रफ्तार में जब थक के बैठ जाती हूँ...
रात का अंधेरा जब भोर की लालिमा पर भारी पड़ जाता है...
अपने ही अस्तित्व से छिड़ी द्वंद्व में,
जब शिकस्त का बादल गरजता है...
तब उन रंगीन पन्नों से ताकती वो स्याही,
मानो फिर से मेरा हाथ थामकर,
मेरी उलझनें बाँट लेना चाहती हो...
मानो फिर से मेरे इस अकेले की जंग में,
साथ देने का आगाज कराना चाहती हो...

-


11 NOV 2020 AT 21:58

आखिर किस बात की सजा है ये?
अपने ही मकां से रूह क्यों खफा है ये?

मोहब्बत में गिरना गर गुनाह है यहाँ,
तो फ़कत मेरे अकेले की नहीं खता है ये!!

अश्कों का शैलाब पहली बार फूटा है?
या रस्म-ए-मोहब्बत का अंजाम हर दफा है ये!!

जिन जुगनूओं को जोड़ खुद ही चिराग बनाया था,
उसी आफताब से फिर क्यों दिल गमज़दा है ये!!

-


19 SEP 2020 AT 20:03

तलब थी जिनकी वो निगाहें,
अब इस ओर नहीं!
अब यहाँ सन्नाटा रहता है जनाब,
कोई शोर नहीं!

गिरे हैं शजर इस कदर कि,
परिंदो का अब कोई ठौर नहीं!
तोड़ कर जब चाहे जोड़ लिए जांए,
ये रिश्ते हैं कोई डोर नहीं!

थक चुका है सब्र आजमाइश से,
बस अब और नहीं!
झुका जरूर है इश्क मेरा,
पर हरगिज कमजोर नहीं!

-


Fetching Shalika Prakash Quotes