Shakti Panchal   (शक्ति)
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QA by profession, Poet by soul.
Joined 24 May 2020


QA by profession, Poet by soul.
Joined 24 May 2020
16 JAN 2022 AT 10:22

People somehow have stopped believing that people can actually be nice. If you are nice to someone, they think that you are pretending.

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13 NOV 2021 AT 21:37

माना मैं कुछ भी नहीं,
धूल सही, रेत का कतरा सही

हर रेत के कतरे को
इंतज़ार रहता है
सही समय और
सही कोण का
जब एक रोशनी की
किरन उस पर पड़ती है
और वो चमक उठती है

मैं भी चमकूंगा
एक दिन तो कहीं...
माना मैं धूल सही
रेत का कतरा सही।

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25 OCT 2021 AT 22:32

ये जो मैं खुद को
बार बार मझधार में
खड़ा पाता हूँ
ये मेरे लिए इम्तेहान
रचते हो या
जानना चाहते हो कि
मेरे जब्त के पार क्या है.......

ये मेरी पीठ मज़बूत
करने कि रवायत है
या दिखाना चाहते हो
कि मेरा किरदार क्या है।

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15 OCT 2021 AT 16:16

तुम्हें ये दुःख तुम्हारा नाम
ऊँचा कर नही पाए
हमे ये गम तुम्हारे हाथ से
महरूम मेरी पेशानी है.

जो इंसान नर्म लहज़े में
हमेशा बात करता हो
उसे फिर क्यों तुम्हे अपनी
आवाज़ की ताक़त दिखानी है?

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2 SEP 2021 AT 13:45

स्क्रीन की सरकती दुनिया को
मोबाइल पलटकर थाम देता हूँ
क्या अब ये आँखें अंधेरे मे सुकून चाहती है?

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18 AUG 2021 AT 20:42

वर्तमान कहता चल कहानी को अंत दे,
सब्र कहता.. रुक, मैंने अरमानों के बीज बोये हैं।

थोड़ा ठहरेगा, तो चख पायेगा कल के फल को
जो बीज अभी मिट्टी के अंधेरों मे सोये हैं।

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17 JUL 2021 AT 19:08

सब्र करूँ कि देखूं
सब्र के पार क्या है
या ये चोला उतार इति कर लूँ?

देखूं कि कर्मों के परिणामों को
भविष्य का गर्भ क्या समेटे है
या परिणाम की नियति तय कर लूँ।

देखूं कि हर भोर का सवेरा
क्या क्या दिखलाता है
या भोर को शाम, शाम को रात्रि कर लूँ।

सब्र करूँ कि देखूं
सब्र के पार क्या है.....

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10 MAY 2021 AT 10:30

इस अंधियारी धूप मे दिखता
तन रोगी और मन भोगी
एक क्षण फिर सब बदलेगा
तब रात उजाली सी होगी।

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24 JAN 2021 AT 21:59

अपनी ही रौ में बह रही थी पुरसुकून जिंदगी,
कैसे करूँ यकीं कि यूँ हालात बदल गये,
ये वक़्त का असर है या बदलाव की बयार,
सिक्के पुराने दौर के नये साँचे में ढल गये।

कल तक जो हमख्याल थे, हमराज़, हमज़ुबां,
बेमेल है अब सोच और झूठी है दास्ताँ,
साथी को दोष दे या अपनी बेवकूफियों को हम,
हम ही नहीं सीखे सबक, बाकी संभल गये।

मैं क्या करूँ कि मिन्नतों पर ऊँगली नहीं उठे,
जज़्बात को मिले जगह और शिकवे सभी मिटे,
उत्तरों को रौंद दूँ या कि प्रश्न संवार दूँ?
ऐसे ही कई सवाल फिर मन में पल गए।

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31 DEC 2020 AT 11:24

क्रोध का कारण जानें
और उसे न दोहराएं।

प्रयास करें आग मे पानी डालें,
घी नहीं।

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