सुकून ढूंढता हैं ये ज़ालिम दिल
कहां सुकून! और कहां दिल लगाई है।
जो करना था, न वो कर पाए
हाय! इस दुनिया ने सब कुछ भुलाई है।
मुँह दिखाने के भी नहीं काबिल
चेहरा देखा के फिर क्यूं बात बढ़ाई है।
कहां खयाले दिल की है जहां जाहिद
बस! चुप रहना ही यहां भलाई है।
इत्ति सी काम और इतना कुछ
चल झूठे! नाम के लिए सिर्फ डंका बजाई है।
बेचैन दिल का अब क्या करे "शान"
रहने दो! दिल भी कहां कुछ छुपाई है।
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