तू पतंग किसी और की, में बंधी किसी और डोर से। ख्वाब बस यही आता है मन में, की टकरा जाऊं तुझ से किसी मोड़ पे। बन फतिंगा ही सही, मिल तो सकू तुझ से करीब से। फस तेरी डोर से, सुलझा सकू सवाल कई क्यों न मिला तू मुझे, क्या रह गई कमी मेरी उड़ान पे। तू हो गई पतंग किसी और की, और में बंध गई किसी और डोर से।।
मैं एक मासूम परिंदा हूं आसमान की ऊंचाइयों से ऊंचा उठ, इन हवाओं में तैरना चाहता हूं। बेफिक्र झरनों की तरह ख्वाबों को उछल छूना चाहता हूं। पर हार सा गया हूं मैं, अब बस ठहरना चाहता हूं। मैं एक सहमा सा परिंदा हूं इन काले अंधेरों से छुप सुनहरी रोशनी में सिमट लेना चाहता हूं। बागों के फूलों की तरह, बैठ मुस्कुराना चाहता हूं। मैं एक छोटा सा परिंदा हूं, कभी कभी थक भी जाता हूं। इस धुएं की चादर से बच उड़ना दूर सही पर जीना तो चाहता हूं। मैं एक मासूम परिंदा हूं अब बस जीना चाहता हूं।।