saurabh chauresiya   (सौरभ)
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मज़ाकिया
मिज़ाजी
पारिवारिक
अज्ञानी
आशिक चाय का!
गँवार!
आवारा
14 feb
Joined 24 January 2019


मज़ाकिया
मिज़ाजी
पारिवारिक
अज्ञानी
आशिक चाय का!
गँवार!
आवारा
14 feb
Joined 24 January 2019
24 AUG 2022 AT 19:04

कैसे बताएं कि क्या हाल-ए-दिल हो रहा है,
तुमसे अब बात करना भी मुश्किल हो रहा है।
सितम, बेचैनी, तन्हाई, तड़प, उदासी,
तुमपर फ़ना होकर भी क्या हासिल हो रहा है।।

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25 JAN 2022 AT 23:11

तुझसे इश्क़ करके भी आखिर क्या करेंगे,
सर्द रातों में तुझे याद करेंगे और क्या करेंगे।

खुशबू फूल से जुदा थोड़े होती है कभी,
बाद मेरे तुझसे लोग हाल मेरा पूछा करेंगे।

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25 JAN 2022 AT 22:51

इस कदर बिखरें हुए हैं तुझको अपना बनाकर,
जैसे घर छोड़ना पड़ा गया कोई सपना सजाकर।
एक हम हैं कि तुझको आँखों मे लिए फिरते हैं,
तुम किसी और के हो गए हमे अपना बनाकर।।

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18 JAN 2022 AT 23:14

मेरे अपने लोग उसको नफ़ीस बताते हैं,
काफ़िर तो खुदा को भी ख़लिश बताते हैं।
हाल पूछा उन्होंने दहलीज के बाहर से ही,
मौत को मोहब्बत की आखिरी किश्त बताते हैं।।

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5 JAN 2022 AT 0:41

हिज़्र भी उन पर ही लाज़िम होता है, जिनको इश्क़ होता है,
कब कौन सुकून से रहता है आसमां भी तो गिरता रहता है।
किसी माँझी के इश्क़ के आगे पहाड़ भी पिघला करते हैं,
इश्क़ तो दरिया है, बहना काम है उसका, बहता रहता है ।।

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17 NOV 2021 AT 13:31

हमारे साथ होने की दूर तलक बात गयी,
तुम्हारे फोन के इंतजार में ये रात गयी।

तुम क्या जानो हम दफ्तर से जल्दी क्यों आते हैं,
दो पल की देरी हुई और फिर मुलाकात गयी।।

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19 OCT 2021 AT 1:03

अमावस में भी ये कैसा नूर बिखरा है,
जरूर वो संवरकर अपने छत पर आई है।

जो उसको ना देखें तो जान जाती है,
जो देख लें तो समझो कयामत आई है।

उनसे कोई कहो कि पर्दा करके आया करें
वो मुस्कुरा रहे हैं इधर जान पर बन आई है।

एक हम हैं जो उनके ही हुए जा रहे हैं,
एक वो हैं जिनकी आदत ही रुसवाई है।

इतना देखा है उन्हें फिर भी जी नही भरा है,
बस उन्हें देखने के लिए नींद अपनी गंवाई है।

ये नदी सिर्फ उनकी प्यास बुझाने को रुकी है,
वरना कब शज़र ने जड़ आसमां में उगाई है।

उनसे दिल सोच समझकर लगाना तुम सौरभ
मोहब्बत में दर्द है, सितम है तन्हाई है।

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9 OCT 2021 AT 0:11

जिस दिन से आये हैं वो हमारे गाँव में,
मुसलसल प्यार बरसा है हमारे गाँव मे ।

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8 OCT 2021 AT 23:45

सितम ये है कि उनको सितमगर कह नही सकते,
मोहब्बत हो गयी है उनसे मगर हम कह नही सकते।

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16 SEP 2021 AT 18:39

इश्क़ में हम इस क़दर उलझे जैसे उसकी ज़ुल्फ़ें,
सुलझ जाएंगे हम भी जो सुलझेंगी उसकी ज़ुल्फ़ें।
ये मौसम आखिर यूँ ही तो नही बेईमान हुआ है,
फ़क़त खुलकर हवा में महकी होंगी उसकी ज़ुल्फ़ें।।

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